डीपफेक: समझें, पहचानें और बचें

आपने सोशल मीडिया या समाचार में कभी ऐसा वीडियो देखा है जहाँ कोई मशहूर व्यक्ति कुछ अजीब कहता या करता दिखता है, पर सोचा कि वो असल में नहीं था? वही है डीपफेक – कंप्यूटर तकनीक से बनाया गया नकली कंटेंट जो देखने में असली जैसा लगता है। आजकल ये तकनीक आसानी से उपलब्ध हो गई है, इसलिए हर कोई इसे इस्तेमाल कर सकता है, चाहे मज़ाक के लिए हो या घतियारी साज़िश के लिए।

डीपफेक कैसे बनता है?

डीपफेक बनाने में दो मुख्य तकनीक इस्तेमाल होती है: जेनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क (GAN) और ऑटॉएन्कोडर. ये एआई मॉडल लाखों वास्तविक छवियों और वीडियो को सीखकर नई, सच जैसी क्लिप बनाते हैं। उदाहरण के तौर पर, किसी सिलेब्रिटी की आवाज़ को बदलकर नई बातों को बोले या चेहरे के हावभाव को बदलकर अलग बातचीत दिखा दें।

बताना जरूरी है कि ये प्रोसेस काफी समय नहीं लेता – कुछ ही घंटों में ही आप एक हाई क्वालिटी डीपफेक बना सकते हैं। याद रखें, अगर वीडियो का बैकग्राउंड बहुत तेज़ या धुंधला है, तो एआई को सटीक रूप से सीखना मुश्किल हो जाता है, इसलिए अक्सर ऐसी छोटी-छोटी गड़बड़ियां ही पहचान का रास्ता बनती हैं।

डीपफेक से कैसे बचें?

पहले तो यह देखना जरूरी है कि स्रोत भरोसेमंद है या नहीं। सरकारी एजेंसियों, बड़े न्यूज़ चैनलों या आधिकारिक वेबसाइटों से आने वाले वीडियो आमतौर पर सुरक्षित होते हैं। अगर कोई अजनबी यूट्यूब चैनल या सोशल अकाउंट से अचानक बड़ी खबर आती है, तो दो‑तीन अलग‑अलग साइटों पर पुष्टि करके ही भरोसा करें।

तकनीक का सहारा भी मददगार है। कई एआई‑टूल्स जैसे Deepware Scanner या Microsoft Video Authenticator फाइल में मौजूद अनियमित पिक्सेल या फ्रेम रेट पैटर्न को ढूँढते हैं। इन टूल्स को फ़्री में इस्तेमाल करके आप जल्दी ही झूठी क्लिप पहचान सकते हैं।

दूसरा आसान कदम है: आवाज़ या लिपि में असंगतियों को सुनना। अक्सर डीपफेक की आवाज़ में प्राकृतिक रुकावट या अनौपचारिक लहजा नहीं रहता। यदि कोई व्यक्ति अचानक बहुत औपचारिक या उलझा हुआ लग रहा हो, तो वही संकेत हो सकता है।

सामाजिक मीडिया पर भी सतर्क रहें। कई बार फेक वीडियो को वायरल करने के पीछे राजनीतिक या आर्थिक मकसद छुपा होता है। इसलिए ‘शेयर’ बटन दबाने से पहले खुद एक चेक कर लेना चाहिए।

अगर आप किसी संस्था या व्यक्ति के बारे में गंभीर आरोप वाले वीडियो देखते हैं, तो तुरंत संबंधित पक्ष को बताएं। कई बार कानूनी कार्रवाई भी संभव होती है, क्योंकि भारत में डिजिटल कंटेंट के लिए अब सख्त नियम बन रहे हैं।

अंत में, डीपफेक के खतरे को समझना और सही टूल्स व व्यवहार अपनाना ही सबसे बड़ा बचाव है। तकनीक तेज़ी से आगे बढ़ रही है, पर हमारी जागरूकता भी उसी गति से बढ़नी चाहिए। फिर चाहे वह चुनावी माहौल हो या व्यक्तिगत जीवन, हम सभी को सच और झूठ के बीच की लकीर को साफ़ देखना जरूरी है।

AI साड़ी ट्रेंड: Google Gemini के नाम पर खेला जा रहा झांसा? पुलिस और विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

के द्वारा प्रकाशित किया गया Aashish Malethia    पर 16 सित॰ 2025    टिप्पणि(0)
AI साड़ी ट्रेंड: Google Gemini के नाम पर खेला जा रहा झांसा? पुलिस और विशेषज्ञों ने दी चेतावनी

सोशल मीडिया पर AI साड़ी ट्रेंड तेजी से फैल रहा है, जहां यूज़र अपनी तस्वीरें अपलोड कर एआई से 'साड़ी' वाली फोटो बनवा रहे हैं। कई पोस्ट इसे Google Gemini या Gemini Nano से जोड़ती हैं, जबकि यह दावा तकनीकी रूप से गलत है। साइबर यूनिट्स ने डेटा चोरी, डीपफेक और पैसों की ठगी के खतरे पर चेताया है। जानिए ट्रेंड कितना सुरक्षित है और खुद को कैसे बचाएं।