जम्मू और कश्मीर चुनाव परिणाम: 2024 का राजनीतिक परिदृश्य
परिणाम की सुबह और पहले संकेत
जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक हलचलें तेज हो गई हैं जब वहां के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने शुरू हुए। यह चुनाव तीन चरणों में आयोजित किया गया था: 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर। इन तीनों चरणों में मतदान की भारी उपस्थिति देखी गई, जिसकी दरें क्रमशः 61.38%, 57.31%, और 65.48% रही। इस बार की वोटिंग दरें प्रदेश में जनता की जागरुकता और चुनाव में उनकी भागीदारी की स्पष्ट तस्वीर पेश करती हैं।
मुख्य दावेदार और संभावनाएं
इस बार के चुनाव में मुख्य राजनीतिक दलों में राष्ट्रीय सम्मेलन (एनसी)-कांग्रेस का गठबंधन, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच कड़ा मुकाबला था। विशेषकर राष्ट्रीय सम्मेलन और कांग्रेस का गठबंधन चुनाव पूर्व के जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार बढ़त बनाए हुए था। संयोजक दल राष्ट्रीय सम्मेलन विधानसभा में सबसे अधिक सीटें लाने की स्थिति में दिखाई दे रहा था, जबकि भाजपा अपनी स्थिति को 2014 के चुनावों से कुछ बेहतर बनाने की उम्मीद में थी।
प्रमुख सीटों पर कड़ा मुकाबला
गंदरबल और बडगाम जैसे महत्वपूर्ण सीटों पर मुख्य मुकाबले हुए। गंदरबल में राष्ट्रीय सम्मेलन के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला स्वतंत्र उम्मीदवार सरजन अहमद वगाय के खिलाफ खड़े थे, वहीं बडगाम में उन्हें पीडीपी के आगा सैयद मुनताज़िर के खिलाफ चुनावी मैदान में चुनौती देनी पड़ी। इन निर्वाचन क्षेत्रों में उनका प्रदर्शन निर्णायक साबित हो सकता है।
सुरक्षा प्रबंध और वोटों की गिनती की व्यवस्थाएं
चुनाव आयोग ने गिनती के दौरान किसी भी प्रकार की बाधा को टालने के लिए गंभीर सुरक्षा प्रबंध किए थे। प्रदेश भर में 20 गिनती केन्द्रों और जिला मुख्यालयों पर तीन ताल सुरक्षा घेरा बनाया गया। इसके बावजूद नागरिकों की सुरक्षा और शांतिपूर्ण मतदान सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और सुरक्षा बलों की संयंत्र द्रुसता विशेष ध्यान में रखा गया।
गठबंधन की संभावना और राजनीतिक समीकरण
जैसे-जैसे परिणाम सामने आए, राष्ट्रीय सम्मेलन और कांग्रेस का गठबंधन 49 सीटें जीतकर बहुमत से कहीं आगे निकल गया। यह गठबंधन अब नई सरकार गठन की दिशा में बड़े कदम उठा रहा है। राष्ट्रीय सम्मेलन के अध्यक्ष फारूख अब्दुल्ला की ओर से पीडीपी के साथ साझेदारी की संभावनाओं के संकेत मिले हैं, अगर शर्तें उपयुक्त बनीं। खास बात यह है कि अब्दुल्ला ने स्पष्ट रूप से जम्मू और कश्मीर विधानसभा की पांच आरक्षित सीटों पर उपराज्यपाल को सदस्यों के नाम नियुक्त करने की अनिवार्यता की आलोचना की है।
इन चुनावों के परिणाम, नेताओं की बयानबाजी और सुरक्षा व्यवस्थाएं मिलकर जम्मू और कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य को एक नई दिशा की ओर धकेल रहे हैं। सरकार गठन के मामले में यह हालात चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, लेकिन लोकतांत्रिक परिस्थितियों के मद्देनजर सरकार गठन के रूप में यह प्रदेश नए परिवर्तनों की ओर अग्रसर है।
Chirag Yadav
अक्तूबर 9, 2024 AT 08:31इस चुनाव में जनता ने सचमुच अपनी आवाज़ उठाई है। वोटिंग रेट देखकर लगता है कि लोग अब सिर्फ वोट देने के बजाय अपने भविष्य के बारे में सोच रहे हैं। गंदरबल और बडगाम जैसे क्षेत्रों में जो मुकाबला हुआ, वो बस राजनीति नहीं, बल्कि आम आदमी की उम्मीदों का टकराव था।
एनसी-कांग्रेस का गठबंधन बहुमत लाने में कामयाब रहा, लेकिन अब उनकी असली परीक्षा शुरू हो रही है - क्या वो सिर्फ सीटें जीत पाएंगे या वास्तविक बदलाव ला पाएंगे?
मैंने देखा कि युवाओं ने इस बार खासतौर पर ज्यादा हिस्सा लिया। ये बदलाव सिर्फ एक चुनाव नहीं, एक नई पीढ़ी की शुरुआत है।
Shakti Fast
अक्तूबर 10, 2024 AT 03:01ये चुनाव बस एक राजनीतिक जंग नहीं, बल्कि एक जागृति की कहानी है। जब एक इलाके जहां दिल टूटा था, वहां लोगों ने वोट से दिल जोड़ दिया।
saurabh vishwakarma
अक्तूबर 11, 2024 AT 07:39अरे भाई, ये सब बातें तो बस धुंधली चादर डालकर छिपाने की कोशिश है। एनसी-कांग्रेस ने जो जीत हासिल की, वो सिर्फ उनके नाम की वजह से हुई - जम्मू-कश्मीर में अब तक किसी ने असली काम नहीं किया।
पीडीपी के साथ साझेदारी? अरे ये तो बस एक अल्पकालिक शराबी की बात है - जब शराब खत्म होगी, तो फिर आप लोग क्या करोगे?
भाजपा को जो बहुत कुछ नहीं मिला, वो भी तो उनकी गलती नहीं, बल्कि लोगों की भूल है - वो भी अपने घर के बाहर बैठे हैं।
उमर अब्दुल्ला के बारे में बात कर रहे हो? वो तो अपने बाप के नाम से चलते हैं - उनके बिना ये दल क्या है? एक बूढ़े का नाम लेकर चलना आज के युवाओं के लिए काफी नहीं।
और जो लोग अब लोकतंत्र की बात कर रहे हैं, उन्हें याद दिला दूं कि जब तक आप बाहरी लोगों के बनाए नियमों के तहत चलते रहेंगे, तब तक कोई असली आजादी नहीं मिलेगी।
इस बार जो वोटिंग रेट बढ़ी, वो बस इसलिए कि लोगों को लगा कि अब तो कुछ न कुछ तो होगा। अगर नहीं हुआ, तो अगली बार वो भी घर पर बैठ जाएंगे।
और वो पांच आरक्षित सीटें? अरे भाई, वो तो अब तक किसी के लिए बहुत बड़ी बात नहीं हैं - ये तो बस एक राजनीतिक जाल है।
अब ये सब बातें बस एक नाटक है। लोग तो अपने घरों में बैठे हैं, बारिश का इंतज़ार कर रहे हैं - और नेता बारिश के बाद भी बरसात का नाम ले रहे हैं।
MANJUNATH JOGI
अक्तूबर 11, 2024 AT 14:29जम्मू-कश्मीर के इस चुनाव को सिर्फ राजनीतिक विश्लेषण से नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक नवजागरण के रूप में देखना चाहिए। यहाँ के लोगों ने अपनी पहचान को वोट के जरिए दोहराया है - जो अब तक बाहरी शक्तियों ने निर्धारित किया था।
गठबंधन के निर्माण के पीछे एक गहरा सामाजिक समझौता छिपा है: जम्मू के भावनात्मक जोश और कश्मीर के विविधता के साथ एक सामान्य आधार बनाने की कोशिश।
वोटिंग रेट के आंकड़े दिखाते हैं कि लोग अब अपने अधिकारों को एक अस्तित्व के रूप में महसूस कर रहे हैं, न कि एक राजनीतिक लीडर के निर्देश के रूप में।
इस गठबंधन की सफलता का मापदंड यह होगा कि क्या वे जम्मू और कश्मीर के लोगों के लिए एक सामाजिक न्याय के आधार पर नीतियाँ बना पाते हैं - न कि केवल एक राजनीतिक जीत।
उमर अब्दुल्ला के बयानों में एक ऐतिहासिक भावना छिपी है - जो लोग अब तक बाहरी नियंत्रण के तहत रहे, वे अब अपनी आंतरिक स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं।
पांच आरक्षित सीटों के बारे में बात करना गलत नहीं, बल्कि यह एक अवसर है - जब तक हम इन आरक्षित सीटों को एक नियंत्रण यंत्र के रूप में नहीं देखेंगे, तब तक यह एक लोकतांत्रिक विकास का अवसर बन सकता है।
इस चुनाव का असली नतीजा यह होगा कि क्या यहाँ के लोग अब अपनी भाषा, अपनी संस्कृति और अपने अधिकारों के लिए एक नई पहचान बना पाते हैं।
Sharad Karande
अक्तूबर 13, 2024 AT 14:13चुनाव आंकड़ों के आधार पर, वोटिंग रेट के लगातार उच्च स्तर ने जम्मू-कश्मीर में नागरिक भागीदारी के एक नए निर्माण की ओर इशारा किया है। यह एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक संस्कृति के अंतर्गत एक गहरी बदलाव की ओर इशारा है।
एनसी-कांग्रेस गठबंधन की बहुमत जीत ने एक बहु-पक्षीय निर्णय लेने की संभावना को बढ़ाया है, जिसके लिए गठबंधन के सदस्यों के बीच संरचनात्मक समझौते की आवश्यकता होगी।
पीडीपी के साथ साझेदारी की संभावना के बारे में, यह एक सामाजिक-राजनीतिक समायोजन का प्रयास है, जिसमें विभिन्न भाषाई, सांस्कृतिक और आर्थिक समूहों के हितों को समन्वयित करना होगा।
आरक्षित सीटों के मामले में, उपराज्यपाल के नियुक्ति अधिकार की आलोचना लोकतंत्र के आंतरिक तंत्र के प्रति एक नियंत्रण यंत्र के रूप में एक वैध आपत्ति है - यह एक संवैधानिक चुनौती है।
सुरक्षा प्रबंध के बारे में, तीन ताल सुरक्षा घेरे के बावजूद, वोटिंग रेट का उच्च स्तर यह साबित करता है कि जनता ने सुरक्षा के बजाय अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी भागीदारी बढ़ाई है।
इस चुनाव के परिणामों का विश्लेषण न केवल राजनीतिक दलों के लिए, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए एक नया मॉडल प्रस्तुत करता है - जहां स्थानीय स्वायत्तता और केंद्रीय नियंत्रण के बीच संतुलन बनाना संभव है।
Sagar Jadav
अक्तूबर 14, 2024 AT 15:12ये सब बकवास है। जब तक लोग अपने घरों में बैठे रहेंगे, तब तक कोई बदलाव नहीं होगा।
Dr. Dhanada Kulkarni
अक्तूबर 16, 2024 AT 00:02इस चुनाव का सबसे बड़ा नतीजा यह है कि लोग अब अपने भविष्य के लिए जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं।
एनसी-कांग्रेस का गठबंधन बस एक राजनीतिक जीत नहीं, बल्कि एक आशा का संकेत है - जब लोग एक साथ आते हैं, तो अलग-अलग राय भी एक दूसरे को समझ सकती हैं।
उमर अब्दुल्ला की आलोचना उनकी बहादुरी का सबूत है - वो अपने आंतरिक विश्वास के लिए बोल रहे हैं, न कि किसी बाहरी दबाव के लिए।
पांच आरक्षित सीटों के बारे में बात करना गलत नहीं, बल्कि यह एक अवसर है - जब तक हम इन्हें एक नियंत्रण नहीं समझेंगे, तब तक यह एक न्याय का आधार बन सकता है।
हर वोट एक आवाज़ है, और आज के ये आवाज़ें बहुत अधिक शक्तिशाली हैं।
ये चुनाव न केवल एक नई सरकार की शुरुआत है, बल्कि एक नई सोच की शुरुआत है - जहां लोग अपने अधिकारों के लिए खड़े हो रहे हैं।
मैं इस दिन को जम्मू-कश्मीर के लिए एक नया आधार बनाने वाला दिन याद रखूंगी।