• घर
  •   /  
  • त्रिपुरा: 800 से अधिक छात्रों में एचआईवी पॉजिटिव, 47 की हुई मौत - गंभीर समस्या की ओर ध्यान

त्रिपुरा: 800 से अधिक छात्रों में एचआईवी पॉजिटिव, 47 की हुई मौत - गंभीर समस्या की ओर ध्यान

के द्वारा प्रकाशित किया गया Aashish Malethia    पर 9 जुल॰ 2024    टिप्पणि(19)
त्रिपुरा: 800 से अधिक छात्रों में एचआईवी पॉजिटिव, 47 की हुई मौत - गंभीर समस्या की ओर ध्यान

त्रिपुरा में एचआईवी का बढ़ता संकट: छात्रों के बीच नशे की लत का प्रभाव

त्रिपुरा से आयी यह खबर हर किसी के रोंगटे खड़े कर देने वाली है। राज्य में 828 छात्र एचआईवी पॉजिटिव पाए गए हैं और 47 छात्रों की मृत्यु हो चुकी है। त्रिपुरा स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी (TSACS) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन छात्रों में से अधिकांश नेख्जएटिक ड्रग इंजेक्शन का इस्तेमाल किया है, जिससे यह संक्रामण तेजी से फैल रहा है।

इस संकट का प्रमुख कारण बताया जा रहा है कि प्रभावी छात्रों की एक बड़ी संख्या ऐसे परिवारों से है जिनके माता-पिता सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं। उनकी नशे की आदतें लंबे समय तक अनदेखी रहती हैं जब तक कि बहुत देर नहीं हो जाती। सोसायटी ने राज्य के 220 स्कूलों और 24 कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों से ऐसे छात्रों की पहचान की है जो इस बुरी आदत के शिकार हैं।

एआरटी केंद्रों में बड़ी संख्या में पंजीकरण

TSACS की रिपोर्ट से पता चला कि राज्य में एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (ART) केंद्रों में अब तक 8,729 लोग जीवित हैं, जिनमें से 5,674 अभी भी इलाज करवा रहे हैं। यहां पर छात्रों और नशेड़ियों की संख्याओं का लगातार बढ़ना चिंता का विषय है।

TSACS ने राज्य के 164 स्वास्थ्य केंद्रों से डेटा इकट्ठा किया है, जिसमें यह भी सामने आया है कि कई छात्रों ने उच्च शिक्षा के लिए देश के अन्य हिस्सों में पलायन कर लिया है। यह प्रवास एचआईवी के अन्य क्षेत्रों में फैलने का संभावित कारण बन सकता है।

समाज और सरकार के प्रयास

एचआईवी के प्रसार को रोकने के लिए चिकित्सा हस्तक्षेप, सार्वजनिक जागरूकता अभियान और सामुदायिक सहभागिता पहल का प्रभावी रूप से उपयोग किया जा रहा है। परंतु, इस संकट से निपटने के लिए एक व्यापक और सजीव रणनीति की आवश्यकता है। सरकार ने छात्रों के बीच इंजेक्शनल ड्रग के उपयोग को नियंत्रित करने की महत्वपूर्णता को रेखांकित किया है।

स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में काउंसलिंग सेवाएं और नशे की रोकथाम के कार्यक्रम बढ़ाए जा रहे हैं। छात्र स्वास्थ्य के क्लीनिक्स में नियमित स्वास्थ्य जांच और नशे के मामलों की निदान का भी योजनाबद्ध तरीके से मूल्यांकन किया जा रहा है। सरकार द्वारा एचआईवी/एड्स की जानकारी और जागरूकता के लिए कई पहल की जा रही हैं, जिनमें सामुदायिक कार्यशालाएं, मुफ्त हेल्थ चेकअप कैंपेन और हेल्पलाइंस शामिल हैं।

समाप्ति में कहा जा सकता है कि यह विषम परिस्थिति किसी एक संगठन या व्यक्ति द्वारा नहीं सुलझाई जा सकती, बल्कि पूरे समाज की एक समग्र और संगठित प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। TSACS के दिशा-निर्देशों का पालन करके और सरकार द्वारा दिए गए उपायों को ग्रहण कर, हम इस संकट का समाधान पा सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि जागरूकता और प्रतिबद्धता से ही हम इस भयावह समस्या का समाधान पा सकते हैं।

19 टिप्पणि

  • Image placeholder

    UMESH DEVADIGA

    जुलाई 11, 2024 AT 16:02

    ये सब बातें तो सुन चुके हैं पर असली समस्या ये है कि हम बच्चों को डर के बजाय जागरूकता से बड़ा रहे हैं। जब तक हम नशे को एक 'प्रॉब्लम' नहीं बनाएंगे बल्कि इसे एक 'सामाजिक असफलता' के रूप में देखेंगे, तब तक कोई चीज़ नहीं बदलेगा। दिल टूट गया है।

  • Image placeholder

    Roshini Kumar

    जुलाई 12, 2024 AT 11:23

    828 छात्र... ओह बस यही नहीं बताया कि कितने बच्चे अभी तक ड्रग्स के बारे में सोच रहे हैं? ये नंबर तो बहुत कम हैं अगर हम त्रिपुरा के असली डेटा को देखें... जिसे आपने छिपा दिया है। 😏

  • Image placeholder

    Siddhesh Salgaonkar

    जुलाई 12, 2024 AT 16:14

    लोग बस ये कहते हैं 'नशा बुरा है'... पर क्या किसी ने सोचा कि जब बच्चे के घर में पापा बॉस हैं और माँ बॉस हैं, तो बच्चा अपने दिमाग को बचाने के लिए इंजेक्शन लगवा लेता है? 🤷‍♂️ ये नहीं कि वो बदमाश है, बल्कि वो टूट चुका है।

  • Image placeholder

    Arjun Singh

    जुलाई 12, 2024 AT 18:23

    ART केंद्रों में 5674 active patients? ये तो बहुत अच्छा है लेकिन इसके पीछे का कॉस्ट बताओ? और ये कि कितने लोगों को इसके लिए डिस्क्रिमिनेट किया जा रहा है? ये सिस्टम तो बस डेटा जनरेट कर रहा है, इम्पैक्ट नहीं।

  • Image placeholder

    yash killer

    जुलाई 14, 2024 AT 13:46

    ये सब बातें हमारी सरकार की नीतियों का नतीजा है जो बच्चों को बाहर भेज रही है और फिर बोल रही है 'हमने किया'। हमारी शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली टूट चुकी है। कोई जवाब नहीं दे रहा। बस आंकड़े दिखा रहा है।

  • Image placeholder

    Ankit khare

    जुलाई 16, 2024 AT 03:58

    देखो भाई साहब ये सब तो सिर्फ शहरों की बात है ना? गांवों में तो लोग अभी तक बीमारी को जादू लगाकर ठीक करते हैं। अगर त्रिपुरा के बच्चे ड्रग्स लेते हैं तो उनके घरों में कोई ने बात नहीं की। जब तक पापा को नशा नहीं छोड़ना होगा तब तक बेटा नहीं बचेगा।

  • Image placeholder

    Chirag Yadav

    जुलाई 16, 2024 AT 19:45

    मैं तो बस ये कहना चाहता हूं कि हर एक बच्चे के पीछे कोई न कोई दर्द होता है। उन्हें दंड नहीं, समझ चाहिए। एक बार उनके साथ बैठकर बात करो, तो शायद तुम्हें पता चल जाए कि वो क्यों इंजेक्शन लेता है।

  • Image placeholder

    Shakti Fast

    जुलाई 18, 2024 AT 11:10

    हम सब इस बात पर ध्यान दें कि बच्चे अकेले नहीं हैं। उनके पास कोई है जो उन्हें सुने। एक बात बताओ तो शायद वो आज जिंदा रहे।

  • Image placeholder

    saurabh vishwakarma

    जुलाई 19, 2024 AT 14:35

    एक बार जब मैं अपने दोस्त के साथ एक ड्रग्स के केंद्र में गया था तो वहां एक लड़का बोला - 'मैं इसे इसलिए लेता हूं क्योंकि मेरी माँ ने मुझे जन्म दिया, लेकिन मेरी ज़िंदगी नहीं दी।' ये बात आज भी मेरे दिमाग में है।

  • Image placeholder

    MANJUNATH JOGI

    जुलाई 20, 2024 AT 16:32

    हम इसे एक 'स्वास्थ्य समस्या' नहीं, बल्कि एक 'सामाजिक असमानता' की समस्या के रूप में देखना चाहिए। जब तक हम नशे को बच्चों के अपराध के रूप में नहीं देखेंगे, बल्कि उनके जीवन के अभाव के रूप में, तब तक ये चक्र चलता रहेगा।

  • Image placeholder

    Sharad Karande

    जुलाई 22, 2024 AT 03:05

    स्वास्थ्य डेटा के अनुसार, त्रिपुरा में ART कवरेज रेट 65% है, जो राष्ट्रीय औसत से कम है। यहां के स्वास्थ्य कर्मचारियों की ट्रेनिंग और एक्सेस की कमी एक महत्वपूर्ण बाधा है। यहां तक कि बेसिक सुविधाएं भी अक्सर नहीं मिलतीं।

  • Image placeholder

    Sagar Jadav

    जुलाई 23, 2024 AT 09:48

    नशा बुरा है। बच्चों को रोको।

  • Image placeholder

    Dr. Dhanada Kulkarni

    जुलाई 24, 2024 AT 19:18

    हर एक बच्चे की जिंदगी बहुमूल्य है। हमें उनके लिए बेहतर जीवन बनाना होगा, न कि उन्हें दोष देना। एक बार उनके साथ बैठें, उनकी आवाज सुनें। वो आपको बता देंगे कि वो क्या चाहते हैं।

  • Image placeholder

    Rishabh Sood

    जुलाई 25, 2024 AT 19:39

    क्या आपने कभी सोचा कि ये बच्चे नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति का एक अंश हैं? जब हम अपने बच्चों को बुलाते हैं तो वो अपने घर से भाग जाते हैं। ये नशा नहीं, ये अलगाव है।

  • Image placeholder

    Saurabh Singh

    जुलाई 27, 2024 AT 04:08

    त्रिपुरा के लोगों को जागना होगा। ये सब तो बस एक बड़ा झूठ है। ये बच्चे अपने आप को नष्ट कर रहे हैं और हम बस डेटा देख रहे हैं। कोई भी नहीं बदल रहा।

  • Image placeholder

    Mali Currington

    जुलाई 28, 2024 AT 05:54

    अरे भाई, ये सब तो हमने देख लिया है। अब तो बस एक नया रिपोर्ट बनाओ और फिर इसे भूल जाओ।

  • Image placeholder

    INDRA MUMBA

    जुलाई 28, 2024 AT 18:15

    हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ये बच्चे भी हमारे ही बच्चे हैं। अगर हम उनके साथ खड़े हो जाएं, तो ये समस्या भी बदल जाएगी। एक बार बात करो, एक बार सुनो, एक बार उन्हें जीने का मौका दो।

  • Image placeholder

    Anand Bhardwaj

    जुलाई 29, 2024 AT 18:52

    मैंने एक बार एक छात्र को इंजेक्शन लगाते देखा था। उसने मुझसे कहा - 'ये मेरी एकमात्र आजादी है।' मैं चुप रह गया। क्या जवाब दूं? वो जी रहा था। हम बस मर रहे थे।

  • Image placeholder

    RAJIV PATHAK

    जुलाई 31, 2024 AT 09:49

    ये सब तो बस एक नियमित बुराई है। जब तक हम अपनी जिंदगी में वास्तविकता को नहीं स्वीकार करेंगे, तब तक ये सब बस एक नंबर रहेगा।