मुद्रास्फीति क्या है? रोज़मर्रा की बात में समझें
जब कीमतें लगातार बढ़ती दिखती हैं, तो हम अक्सर कहते हैं – ‘महंगाई बढ़ रही है’। असल में यही मुद्रास्फीति है. ये एक आर्थिक संकेतक है जो बताता है कि हमारे पैसों की खरीद शक्ति कम हो रही है। अगर आप रोज़मर्रा के सामान की कीमत देख रहे हों, तो समझ लीजिए आपका पैसा थोड़ा कमजोर हो रहा है.
भारत में हालिया मुद्रास्फीति रुझान
2024‑25 वित्तीय साल में RBI ने कई बार रेपो दर बढ़ाई, क्योंकि महंगाई 6 % से ऊपर चली गई थी. पेट्रोल, सब्ज़ी और किराने की कीमतें लगातार तेज़ी से बढ़ी। इस कारण लोगों के बजट पर दबाव बढ़ा और बचत योजनाओं का आकर्षण घटा. लेकिन कुछ सेक्टर जैसे IT सेवाएँ और रियल एस्टेट में मूल्य स्थिर रहने लगे, जिससे कुल मिलाकर इन्फ्लेशन का असर विविध रहा.
मुद्रास्फीति को कैसे कम करें? आसान उपाय
सरकार के पास दो मुख्य हथियार हैं – मौद्रिक नीति और राजकोषीय नीति. RBI की ब्याज दर बढ़ाने से खर्च घटता है, जबकि बजट में टैक्स रीफ़ॉर्म या सब्सिडी देने से कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर आप भी छोटे‑छोटे कदम उठा सकते हैं: बड़ी खरीदारी के लिए ऑफ़र देखना, लोकल मार्केट से सामान लेना और अनावश्यक कर्ज़ से बचना.
अगर आप निवेश की सोच रहे हैं, तो मुद्रास्फीति को ध्यान में रखकर ऐसे विकल्प चुनें जो रियल एस्टेट या सॉलिड गोल्ड जैसे इंफ़्लेशन‑हेजिंग इंस्ट्रूमेंट्स हों. म्यूचुअल फंड के इक्विटी सेक्टर में भी अच्छा रिटर्न मिल सकता है, क्योंकि कंपनियाँ महंगाई बढ़ने पर कीमतें घटाने की बजाय लागत पास कर देती हैं.
आगे चलकर अगर RBI फिर से रेपो दर घटाएगा, तो यह संकेत देगा कि महंगाई नियंत्रण में आ रही है. ऐसे समय में बचत खाता या फिक्स्ड डिपॉज़िट पर रिटर्न बेहतर हो सकता है. इसलिए आर्थिक खबरों को नज़रअंदाज़ ना करें; हर नई घोषणा आपके रोज़मर्रा के खर्चे को सीधे प्रभावित करती है.
सारांश में, मुद्रास्फीति सिर्फ आँकड़ें नहीं, बल्कि हमारी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा है. इसे समझना और उसके अनुसार अपनी वित्तीय योजना बनाना भविष्य में आर्थिक तनाव से बचाता है. इस टैग पेज पर आप हर दिन नई खबरें, विश्लेषण और टिप्स पाएंगे – बस पढ़ते रहिए और तैयार रहें।
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