• घर
  •   /  
  • राजस्थान में 70.55% मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं, सीईओ नवीन महाजन

राजस्थान में 70.55% मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं, सीईओ नवीन महाजन

के द्वारा प्रकाशित किया गया Aashish Malethia    पर 3 नव॰ 2025    टिप्पणि(5)
राजस्थान में 70.55% मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं, सीईओ नवीन महाजन

राजस्थान के 5.48 करोड़ मतदाताओं में से लगभग तीन-चौथाई को अब दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं होगी। राजस्थान के मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन महाजन ने जयपुर में शनिवार को घोषणा की कि राज्य के नवीन महाजन ने घोषणा की कि चुनाव आयोग भारत के तहत चल रहे विशेष तीव्र संशोधन (SIR) के दौरान, 70.55 प्रतिशत मतदाताओं के डेटा पहले से ही 2002-2005 के पुराने मतदाता सूचियों से मिल गए हैं। यानी उन्हें कोई दस्तावेज नहीं देना होगा। ये आंकड़ा राज्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि अन्य राज्यों में यह दर केवल दहाई के करीब है।

राजस्थान की अग्रणी भूमिका: वोटर मैपिंग में नंबर एक

राजस्थान अब तक ऐसे 12 राज्यों में सबसे आगे है, जहां SIR लागू किया जा रहा है। चुनाव आयोग के नेटवर्क पर राजस्थान ने 49.37 प्रतिशत वोटर मैपिंग पूरी कर ली है। इसके बाद आते हैं छत्तीसगढ़ (24.27%), तमिलनाडु (21.62%), मध्य प्रदेश (20.09%), उत्तर प्रदेश (13.41%) और गुजरात (5.73%)। ये अंतर सिर्फ आंकड़ों का नहीं, बल्कि प्रशासनिक तैयारी का भी संकेत है।

महाजन ने बताया कि 40 वर्ष से अधिक आयु के 79.32 प्रतिशत मतदाताओं का डेटा ब्यूथ लेवल ऑफिसर (BLO) ऐप के जरिए पहले से मैप कर लिया गया है। लेकिन 40 वर्ष से कम आयु के मतदाताओं में से केवल 22.22 प्रतिशत का डेटा मैप हुआ है। यह अंतर एक चेतावनी है — युवाओं को शामिल करने के लिए अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।

नए मतदाता केंद्र और घूमते परिवारों के लिए खास व्यवस्था

SIR पूरा होने के बाद राजस्थान में कुल 61,309 मतदान केंद्र होंगे, जिसमें 8,819 नए केंद्र शामिल होंगे। इससे प्रति मतदान केंद्र औसतन 890 मतदाता आएंगे, जो पिछले दौर की तुलना में काफी कम है। ये बदलाव वोटिंग की प्रक्रिया को अधिक सुगम और सुलभ बनाने के लिए किया जा रहा है।

सबसे दिलचस्प बात? घूमते परिवारों — जिन्हें राज्य में ‘गुमांतु’ कहा जाता है — के लिए अलग व्यवस्था की गई है। BLOs अपने साथ स्वयंसेवकों को लेकर इन परिवारों के घरों तक जाएंगे, फॉर्म वितरित करेंगे और भरे हुए फॉर्म एकत्र करेंगे। यह एक ऐसा कदम है जो सिर्फ शासन की नहीं, बल्कि समावेशन की भावना को दर्शाता है।

उत्तर प्रदेश की तुलना: दस्तावेजों की भारी बोझ

जबकि राजस्थान में 70.55 प्रतिशत मतदाताओं को दस्तावेज नहीं देने हैं, उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 48 प्रतिशत है। यहां वह लोग जो 1 जुलाई 1987 से पहले पैदा हुए हैं और उनका नाम 2003 की सूची में है, उन्हें केवल उस सूची की प्रति देनी होगी। लेकिन बाकी सभी को 11 में से कोई एक दस्तावेज देना होगा — जिसमें जन्म प्रमाणपत्र, आधार, निवास प्रमाणपत्र आदि शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश के लिए योजना इस प्रकार है: 9 दिसंबर, 2025 को मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित होगी, 9 दिसंबर से 8 जनवरी 2026 तक आपत्तियां दर्ज की जा सकेंगी, और 7 फरवरी, 2026 तक अंतिम सूची जारी की जाएगी। यह एक लंबी प्रक्रिया है — और उत्तर प्रदेश के 154.4 करोड़ मतदाताओं के लिए यह एक भारी लोड होगा।

असम के NRC का सबक: दस्तावेजों का भार और नागरिकता का सवाल

असम के NRC का सबक: दस्तावेजों का भार और नागरिकता का सवाल

इस सब के पीछे एक गहरा राजनीतिक और सामाजिक प्रश्न छिपा है — नागरिकता की पुष्टि। असम का NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) एक चेतावनी की तरह है। 3.3 करोड़ लोगों को साबित करना पड़ा कि वे 24 मार्च, 1971 से पहले असम में रहते थे। 1.9 करोड़ लोग बाहर निकल गए। 1,600 करोड़ रुपये खर्च हुए। 6.6 करोड़ दस्तावेजों को 2,500 सेवा केंद्रों पर 52,000 अधिकारियों ने प्रोसेस किया।

लेकिन अब तक किसी की नागरिकता नहीं छीनी गई — क्योंकि सूची अभी तक घोषित नहीं हुई है। हर निष्कासित व्यक्ति के लिए विदेशी अदालतों और फिर सुप्रीम कोर्ट तक जाने का रास्ता खुला है। यह एक ऐसा तंत्र है जो लोगों को भ्रमित करता है, उन्हें डराता है, और अक्सर उन्हें नागरिकता के अधिकार से वंचित कर देता है — बिना किसी न्याय के।

बिहार में भी अभी एक नया कानून बनाया गया है जिसमें मतदाताओं को अपनी नागरिकता साबित करने की आवश्यकता है — और इसकी आलोचना बड़ी तेजी से बढ़ रही है।

अगले कदम: युवाओं को कैसे शामिल करें?

अब सवाल यह है — राजस्थान अपनी सफलता को कैसे बनाए रखेगा? युवाओं के लिए डिजिटल जागरूकता अभी बहुत कम है। BLOs को अधिक प्रशिक्षित करना होगा। स्कूलों, कॉलेजों और युवा संगठनों के साथ साझेदारी करनी होगी। अगर युवाओं को शामिल नहीं किया गया, तो आने वाले चुनावों में उनकी आवाज़ खो जाएगी।

एक बात स्पष्ट है — दस्तावेजों की भारी बोझ के बजाय, डेटा मैचिंग और डिजिटल विश्लेषण का उपयोग ही भविष्य है। राजस्थान ने यही रास्ता चुना है। अब देखना होगा कि अन्य राज्य इसे अपनाते हैं या नहीं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या राजस्थान में दस्तावेज जमा करने वाले मतदाताओं की संख्या कम होने से चुनावी धोखाधड़ी का खतरा कम हो जाता है?

हां, यह खतरा कम होता है। राजस्थान में डेटा मैचिंग के लिए ब्यूथ लेवल ऑफिसर्स के पास एक डिजिटल ऐप है जो आधार, राशन कार्ड, और पुराने मतदाता सूचियों के साथ ऑटोमैटिक वेरिफिकेशन करता है। इससे नकली नाम और दोहरी रजिस्ट्रेशन का खतरा कम हो जाता है। अगर दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं है, तो लोगों को ब्यूरोक्रेटिक बाधाओं से बचाया जा रहा है, जिससे चुनाव प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होती है।

क्यों युवा मतदाताओं की मैपिंग कम है?

युवाओं के डेटा कम होने का कारण यह है कि उनके जन्म प्रमाणपत्र अक्सर घरों में नहीं होते, या उनके नाम अभी तक आधार या राशन कार्ड पर अपडेट नहीं हुए हैं। इसके अलावा, युवा अक्सर शहरों में रहते हैं और BLOs की घर-घर यात्रा उन तक पहुंच नहीं पाती। इसलिए, स्कूलों, कॉलेजों और युवा संगठनों के माध्यम से अभी तक अच्छी तरह से जुड़ने की आवश्यकता है।

असम के NRC का राजस्थान के SIR से क्या अंतर है?

NRC में हर व्यक्ति को 1971 से पहले के परिवार के दस्तावेजों के आधार पर नागरिकता साबित करनी पड़ी — जो अधिकांश लोगों के लिए असंभव था। SIR में बस एक डेटा मैचिंग होती है — अगर आपका नाम पहले की सूची में है, तो आपको कुछ नहीं करना। NRC एक नागरिकता जांच थी, SIR एक मतदाता सूची सुधार है। एक ने लोगों को नागरिक बनने से रोका, दूसरा उन्हें शामिल करने की कोशिश कर रहा है।

क्या राजस्थान की यह रणनीति अन्य राज्यों के लिए मॉडल बन सकती है?

बिल्कुल। राजस्थान ने बिहार के भ्रम को सीखकर एक डिजिटल, डेटा-आधारित दृष्टिकोण अपनाया है। अगर उत्तर प्रदेश या बिहार भी अपने ब्यूथ लेवल ऑफिसर्स को डिजिटल ऐप्स दें और पुराने डेटा के साथ मैच करने लगें, तो दस्तावेजों का भार कम हो जाएगा। यह न सिर्फ लोगों के लिए आसान है, बल्कि चुनाव आयोग के लिए भी अधिक कुशल है।

5 टिप्पणि

  • Image placeholder

    Sita De savona

    नवंबर 5, 2025 AT 06:08

    70% लोगों को दस्तावेज नहीं देने तो बहुत अच्छी बात है लेकिन युवाओं का 22% ही मैप हुआ है ये क्या बात है भाई ये तो बस नंबर बढ़ाने का खेल है

  • Image placeholder

    shubham jain

    नवंबर 5, 2025 AT 09:04

    राजस्थान का डेटा मैचिंग सिस्टम भारत का सबसे सफल वोटर रजिस्ट्रेशन मॉडल है। अन्य राज्य इसे नकल करें तो बेहतर होगा।

  • Image placeholder

    anil kumar

    नवंबर 5, 2025 AT 22:35

    ये डिजिटल ऐप वाली बात तो जबरदस्त है लेकिन गाँवों में जहाँ इंटरनेट भी नहीं चलता वहाँ क्या होगा? तकनीक अच्छी है लेकिन इंसानी वास्तविकता को भूल रहे हो।

  • Image placeholder

    Aarya Editz

    नवंबर 6, 2025 AT 02:12

    असम के NRC से राजस्थान का SIR बिल्कुल अलग है। एक ने लोगों को नागरिक बनने से रोका, दूसरा उन्हें शामिल करने की कोशिश कर रहा है। ये अंतर समझना जरूरी है।

  • Image placeholder

    Sanjay Gandhi

    नवंबर 7, 2025 AT 20:55

    मैं तो सोच रहा था कि युवाओं के लिए ऐप बनाया जाएगा लेकिन अभी तक नहीं बना। बस ब्यूथ ऑफिसर्स को भेज दिया। ये तो अभी भी 2005 का तरीका है।