World Mental Health Day के अवसर पर राजस्थान में एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया – 22% से अधिक युवाओं को डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं, और व्यापारी, पुलिस और कामकाजी महिलाएँ सबसे अधिक प्रभावित हो रही हैं। ये डेटा विभिन्न राष्ट्रीय‑अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों और राज्य स्वास्थ्य विभाग के सर्वेक्षणों का संयुक्त परिणाम है, जो 2020‑2024 के बीच किए गए हैं।
आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि कॉलेज के कैंपस, छोटे शहरों की गली‑गली और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर गूँजती पीड़ाओं की कहानी फुसफुसाते हैं। इस लेख में हम कारणों, मौजूदा प्रयासों और आगे के संभावित कदमों पर एक‑एक करके प्रकाश डालेंगे।
पृष्ठभूमि और प्रमुख आंकड़े
जब डॉ. राजेश गुप्ता, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक राजस्थान मेडिकल व हेल्थ सर्विसेज़ निदेशालय ने कहा कि “13‑19 वर्ष के 22.3% किशोरों में क्लिनिकल डिप्रेशन और एंग्जायटी लक्षण दिखे हैं”, तो यह रिपोर्ट सिर्फ एक झलक है। इन सर्वेक्षणों को जनवरी‑मार्च 2024 के बीच जिला‑स्तर पर किया गया था।
अमेरिकी जर्नल American Journal of Psychiatric Rehabilitation ने जनवरी 2025 में एक अध्ययन प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था "Neuropsychological And Behavioral Correlates Of Excessive Internet Use In Early Adolescents In Rajasthan" (DOI: https://doi.org/10.69980/ajpr.v28i5.632)। इस अध्ययन के प्रमुख लेखकों में डॉ. अनन्या शर्मा (AIIMS जोधपुर) और डॉ. विक्रम सिंह (राजस्थान राज्य मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, जयपुर) शामिल थे। उन्होंने 1,247 किशोरों का 15 जिलों में अध्ययन किया और पाया कि 31.2% को इंटरनेट एडिक्शन के लक्षण दिखे, जबकि उनका औसत DASS‑21 डिप्रेशन स्कोर 24.7 था – जो नॉन‑एडिक्टेड समूह से काफी अधिक है।
इसी बीच Sapien Labs ने नवंबर 2023 में प्रकाशित "Mental State of India Report" में कहा कि राजस्थान केवल 38.7% सकारात्मक मानसिक कल्याण स्कोर के साथ 18‑74 आयु वर्ग में सबसे कम प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है, जबकि केरल 62.4% पर है। रिपोर्ट की लीड रिसर्चर डॉ. टारा पटेल ने बताया कि 2020‑2023 के बीच इंटरनेट‑सक्षम जनसंख्या का मानसिक स्वास्थ्य 14.3% पॉइंट गिरा, और राजस्थान में ये गिरावट 18.7% थी।
विस्तृत अध्ययन और मुख्य खोजें
- विकासशील इंटरनेट उपयोग: 68.7% किशोरों ने इंटरनेट का उपयोग मनोरंजन के लिए किया; 31.2% में एडिक्शन के लक्षण।
- लिंग‑आधारित अंतर: राष्ट्रीय लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन (PMC11194636) के एक जून 2024 के अध्ययन में 48.78% किशोर लड़कियों ने तीन या अधिक मानसिक स्वास्थ्य लक्षण दिखाए।
- कोविड‑19 के दौरान एंग्जायटी स्कोर: 50.7 (फरवरी 2020‑जनवरी 2022)।
- स्कूल‑बच्चे: 35.66% एंग्जायटी की व्यापकता, जिला‑विषयक दर 20‑51% तक।
- सहयोगी कार्यक्रम: PAnKH (Promoting Adolescent Engagement, Knowledge and Health) ने 2023 में 2,858 माताओं को लक्ष्य किया, जिससे कार्यरत माताओं में मानसिक तनाव 23.7% घटा।
ऊपर बताई गई आँकडों को देखते हुए, राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कई कारणों को प्रमुख ड्राइवर बताया – शैक्षणिक दबाव, साइबरबुलिंग, पारिवारिक कार्य‑संबंधी तनाव। ये कारक राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (RKYSK) के तहत राजस्थान राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी द्वारा 2014 से पहचाने जा रहे हैं। इस कार्यक्रम के प्रमुख अधिकारी डॉ. संजय मेहता ने सप्ताहिक सम्मेलन में कहा कि “शिक्षा प्रणाली में बदलाव और ऑनलाइन सुरक्षा दोनों को एक साथ सुलझाना होगा”।
सरकारी और गैर‑सरकारी प्रतिक्रियाएँ
राजस्थान सरकार ने अंतरराष्ट्रीय फ़ूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IFPRI) और सेवा मंडिर एनजीओ के साथ मिलकर PAnKH Programme लागू किया। इस पहल के प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. नंदिनी देसाई ने मार्च 2023 में बताया, “ग्रामीण कार्यस्थलों में किफायती डे‑केयर ने कामकाजी महिलाओं के तनाव स्कोर को 17‑23% तक घटाया है”।
जिला‑स्तर पर राजस्थान राज्य बाल अधिकार आयोग (RSCPCR) ने 5 सितम्बर 2024 को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें सभी स्कूलों को दिसंबर 2024 तक मनोवैज्ञानिक प्रथम‑सहायता प्रशिक्षण देना और 31 मार्च 2025 तक 250 छात्रों पर एक प्रशिक्षित काउंसलर नियुक्त करना अनिवार्य कर दिया गया। यह कदम एसपीएसआर (School Psychological Support Resources) के तहत तैनात किया जाएगा।
प्रभाव और सामाजिक पहलू
संख्यात्मक रूप से देखिए तो कोचिंग सेंटर्स में आत्महत्या दर 2019 के 4.38 प्रति 100,000 से बढ़कर 2023 में 20.51 हो गई। यह डेटा Journal of Psychiatric Rehabilitation (15 अगस्त 2024) में प्रकाशित हुआ। विशेषज्ञों का मानना है कि अत्यधिक प्रतिस्पर्धा और माता‑पिता की अपेक्षाओं के कारण यह उछाल आया है।
इस बीच ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल डिवाइड स्पष्ट है – जयपुर में घरों में इंटरनेट का प्रसार 87.3% है, जबकि जैसलमेर में सिर्फ 32.8%। इसी अंतर ने शहरी‑ग्रामीण मानसिक स्वास्थ्य अंतर को और गहरा किया है।
भविष्य के कदम और नीति‑निर्देश
राज्य ने अगले तीन महीनों में 10,000 स्कूलों में ‘मानसिक स्वास्थ्य क्लब’ स्थापित करने की योजना बताई है, जिससे छात्र‑छात्राओं को नियमित समूह चर्चा और प्रोफेशनल काउंसलिंग मिल सके। इसके साथ ही, युवा उद्यमियों के लिए ‘स्ट्रेस‑लेस स्टार्टअप’ इन्क्यूबेटर लॉन्च किया जाएगा, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य कोर प्रोग्राम शामिल होगा।
विचार-विमर्श के दौरान कई शैक्षणिक संस्थानों ने ‘डेटेड टेस्टिंग’ मॉडल अपनाने का प्रस्ताव दिया – जहाँ परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ समग्र माइंडफुलनेस और समय‑प्रबंधन पर भी कार्यशाला आयोजित की जाएगी। यह मॉडल एआई‑आधारित प्लैटफ़ॉर्म द्वारा समर्थन पाया है, जिससे व्यक्तिगत तनाव स्तर को रीयल‑टाइम में मॉनिटर किया जा सके।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और तुलना
पिछले दशक में भारत में मानसिक स्वास्थ्य में सुधार की गति धीरे‑धीरे बढ़ी, परन्तु राजस्थान ने अभी भी पिछड़ाव दिखाया है। 2010‑2015 के बीच राज्य का मानसिक स्वास्थ्य सूचकांक राष्ट्रीय औसत से 15‑20 अंक कम रहा। पिछले पाँच साल में डिजिटल पिनपॉइंट्स के कारण युवा वर्ग में ‘इंटरनेट एंग्जायटी’ का उदय हुआ, जो अन्य राज्यों (जैसे केरल, तमिलनाडु) में कम देखा गया।
समान सामाजिक-आर्थिक स्थितियों वाले मड्यूलर क्षेत्रों, जैसे उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में भी समान समस्याएँ उभर रही हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह केवल राजस्थान का नहीं, बल्कि भारत के विकासशील क्षेत्रों का एक व्यापक मुद्दा है।
मुख्य बिंदु (Key Facts)
- राजस्थान में 22.3% किशोरों में डिप्रेशन/एंग्जायटी के क्लिनिकल लक्षण।
- 31.2% युवाओं में इंटरनेट एडिक्शन, जो डिप्रेशन स्कोर को औसतन 7‑8 पॉइंट बढ़ाता है।
- किशोरियों में 48.78% ने तीन या अधिक मानसिक लक्षण रिपोर्ट किए।
- कोचिंग छात्रों में आत्महत्या दर 2019‑2023 में 4.7× बढ़ी।
- RSCPCR ने 2024‑2025 में स्कूलों में काउंसलर‑स्टूडेंट अनुपात 1:250 करने का आदेश दिया।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
राजस्थान में युवा मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे बड़ा कारण क्या माना जा रहा है?
सर्वेक्षणों में शैक्षणिक दबाव, इंटरनेट एडिक्शन और पारिवारिक तनाव को तीन प्रमुख कारक बताया गया है। खास कर परीक्षा‑परीक्षा की लडाई और ऑनलाइन बुली‑इंग ने तनाव को बढ़ा दिया।
क्या सरकारी योजनाएँ इस समस्या को हल करने में सक्षम हैं?
राज्य ने RKYSK, PAnKH और नई स्कूल‑काउंसलिंग नीति के तहत 10,000 स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य क्लब स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। शुरुआती रिपोर्टों से बच्चों में तनाव स्तर में 15‑20% सुधार दिख रहा है।
महिलाओं और पुलिस बल को विशेष रूप से क्यों प्रभावित किया गया?
कामकाजी महिलाओं को घर‑काम‑काम के दोहरे बोझ और सीमित मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं का सामना करना पड़ता है, जबकि पुलिस कर्मियों को शिफ्ट‑कार्य और जोखिमपूर्ण परिस्थितियों का तनाव मिलता है। ये दोनों समूहों में आत्म‑सहायता समूहों की कमी ने समस्या को गहरा किया।
इंटरनेट एडिक्शन का प्रभाव कितना गंभीर है?
AIIMS जोधपुर के अध्ययन में पाया गया कि एडिक्टेड किशोरों का औसत DASS‑21 डिप्रेशन स्कोर 24.7 है, जबकि नॉन‑एडिक्टेड का स्कोर 12.3। यह अंतर मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए चेतावनी संकेत है।
भविष्य में कौन‑सी नई पहलें उम्मीद की जा रही हैं?
आगामी वर्ष में राज्य अपने स्कूल‑पाठ्यक्रम में ‘माइंडफ़ुलनेस और समय‑प्रबंधन’ मॉड्यूल जोड़ने की योजना बना रहा है, साथ ही एआई‑आधारित तनाव‑निगरानी प्लेटफ़ॉर्म भी लागू किया जाएगा।
Hrishikesh Kesarkar
अक्तूबर 11, 2025 AT 03:27डाटा सही है, पर रोकथाम के concrete steps नहीं दिखाए गए।
MANOJ SINGH
अक्तूबर 15, 2025 AT 18:33बहुत बढ़िया लेख, आंकड़े वाकई चिंताजनक हैं। राज्य ने कुछ पहलें शुरू की हैं, पर जमीन स्तर पर उनका प्रभाव अभी स्पष्ट नहीं है। हमें स्कूलों में काउंसलर की संख्या बढ़ानी चाहिए ताकि बच्चों को तुरंत मदद मिल सके।
Vaibhav Singh
अक्तूबर 20, 2025 AT 09:40डेटा देखकर तो कोई परवाह नहीं करता, पर असली समस्या तो लागू उपायों में ही है। अगर सरकार तत्कालिक मनोवैज्ञानिक सहायता नहीं बढ़ाएगी तो ये आँकड़े और बढ़ेंगे।
harshit malhotra
अक्तूबर 25, 2025 AT 00:47राजस्थान में मानसिक स्वास्थ्य की हालत देखकर दिल टूट जाता है, लेकिन यहाँ की राजनीति इस मुद्दे को हमेशा ही टेबल के नीचे रखती है।
पहले तो कहा जाता है कि युवा पीढ़ी ढीली है, फिर कहा जाता है कि इंटरनेट के झुंड ने उन्हें बर्बाद कर दिया।
ऐसे भ्रमित करने वाले बयान सिर्फ भ्रम फैलाते हैं, वास्तविक समाधान के लिए ठोस कदम नहीं दिखाते।
डिप्रेशन के 22% आंकड़े सिर्फ एक संख्या नहीं, ये वास्तविक सपनों के टूटने की कहानी है।
जब हम कहते हैं कि परीक्षा दबाव बड़ा कारण है, तो वही दबाव सरकार के अपने नीतियों से भी आता है।
स्कूलों में काउंसलर की कमी, ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुँच न होना, और कामकाजी महिलाओं पर दुश्मन जैसी लाइफस्टाइल - ये सब मिलकर एक बड़ा जाल बुनते हैं।
हर साल कोचिंग सेंटर में आत्महत्याओं की संख्या बढ़ती है, पर क्या कोई इसको रोकने की कोशिश कर रहा है? नहीं।
सरकारी रिपोर्ट्स में तो बस आँकड़े ही पेश किए जाते हैं, लेकिन उनका वास्तविक प्रभाव देखते ही नहीं।
भले ही हम नई पहल की बात करें, पर अगर वास्तविक बजट नहीं दिया गया तो वह भी हवा में ही रह जाएगी।
एक बात तो साफ है – हमें न सिर्फ आंकड़े दिखाने चाहिए, बल्कि उन पर कार्रवाई भी करनी चाहिए।
डेटा एपीजे के माध्यम से आया है, पर क्या इस डेटा को वास्तविक नीति बनाने में उपयोग किया गया? नहीं।
जब मैं देखता हूँ कि राजस्थानी युवा इंटरनेट एडिक्शन से ग्रस्त हैं, तो मुझे लगता है कि हमें डिजिटल लिटरेसी के साथ-साथ डिजिटल वेलनेस भी सिखाना चाहिए।
सिर्फ मोबाइल या लैपटॉप नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के हेल्थटेक टूल्स को भी स्कूलों में लाना चाहिए।
बहुपक्षीय सहयोग की बात सही है, पर उसका वास्तविक निष्पादन कहाँ है? अभी तो शब्दों में ही रह गया है।
अंत में मैं यही कहूँगा कि अगर हम इस समस्या को हल नहीं कर पाए, तो अगले दस साल में राजस्थान मानसिक रोगों का हॉटस्पॉट बन जाएगा।
Ankit Intodia
अक्तूबर 29, 2025 AT 15:53मन के अंदर की गहराइयों को समझना जरूरी है, क्योंकि बाहरी आँकड़े केवल सतह दिखाते हैं। एक छोटा सा तनाव भी अगर अनदेखा रहे तो बड़े रोग का कारण बन सकता है।
saurabh waghmare
नवंबर 3, 2025 AT 07:00आप सभी ने बहुत उपयोगी बिंदु उठाए हैं। मैं मानता हूँ कि शिक्षा प्रणाली में बदलाव और डिजिटल साक्षरता दोनों को एक साथ करना आवश्यक है। साथ ही, कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य के लिए समर्थन नेटवर्क स्थापित किया जाना चाहिए।
Madhav Kumthekar
नवंबर 7, 2025 AT 22:07डेटा को देखते हुए, तुरंत कुछ कार्यशालाए आयोजित करनी चाहिए। स्कूलों में प्रशिक्षण के साथ-साथ कार्यस्थलों पर भी काउंसलर की उपलब्धता बढ़नी चाहिए। एक बार कोशिश करिये, फिर देखिये फ़रक।
Deepanshu Aggarwal
नवंबर 12, 2025 AT 13:13यह रिपोर्ट बहुत हाइलाइट करती है कि हमें जल्द ही एक्शन लेना चाहिए :) बच्चो को सायकोलॉजिकल सपोर्ट देना ज़रूरी है।
Swapnil Kapoor
नवंबर 17, 2025 AT 04:20डेटा बहुत बुनियादी है, लेकिन इसका विश्लेषण गहरा नहीं है। हमें सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि उन पर आधारित ठोस रणनीतियां चाहिए।
kuldeep singh
नवंबर 21, 2025 AT 19:27क्या बात है, ये आँकड़े इतने उँचे पाँव पर लिखे गये हैं कि कोई समझ ही नहीं पाता! बस ट्यूशन के चक्कर में ही सब कुछ उलझा दिया गया है।
Shweta Tiwari
नवंबर 26, 2025 AT 10:33उपरोक्त आँकड़ें स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि संज्ञानात्मक हस्तक्षेपों की आवश्यकता है। विशेषतः, शैक्षणिक संस्थानों को मानसिक स्वास्थ्य पाठ्यक्रम को अनिवार्य बनाना चाहिए, जिससे दीर्घकालिक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।