जया एकादशी 2025 का त्योहार 8 फरवरी, 2025 को भारत और विश्वभर के हिंदू समुदायों में मनाया जाएगा। यह दिन न केवल आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है, बल्कि घर में धन-समृद्धि के लिए भी माना जाता है। एकादशी तिथि 7 फरवरी, 2025 को रात 9:26 बजे शुरू होगी और 8 फरवरी को शाम 8:15 बजे समाप्त होगी। लेकिन इस दिन की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार एकादशी का व्रत जया एकादशी के साथ भद्रकाल के समय में मिल रहा है — जिसके कारण विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
तुलसी और विष्णु: एक अटूट बंधन
हिंदू पुराणों में तुलसी का स्थान अलग है। भगवान विष्णु के शलिग्राम रूप की पत्नी मानी जाने वाली देवी तुलसी के बिना उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है। यही कारण है कि जया एकादशी के दिन किसी भी पूजा में तुलसी के पत्ते अनिवार्य हैं। ABP Live News के अनुसार, विष्णु ने स्वयं घोषणा की है कि बिना तुलसी के कोई अर्पण स्वीकार नहीं करते। इसीलिए विष्णु, कृष्ण, राम और उनके सभी अवतारों की पूजा में तुलसी का प्रयोग होता है।
यही वजह है कि जया एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते चढ़ाने को लक्ष्मी की कृपा पाने का सीधा रास्ता माना जाता है। ABP Live News का खास लेख इसी बात पर जोर देता है: "तुलसी के साथ विष्णु की पूजा करने से घर में धन, समृद्धि और शांति आती है।" यही नहीं, Moneycontrol.com भी बताता है कि इस दिन भगवान विष्णु के माधव रूप की पूजा विशेष फायदेमंद है।
शुभ मुहूर्त और भद्रकाल: सावधानियाँ
जया एकादशी की पूजा के लिए शुभतम समय 8 फरवरी को सुबह 8:28 बजे से 9:50 बजे तक है। इससे पहले, सुबह 7:05 बजे से पूजा शुरू करने की अनुमति है। लेकिन यहाँ एक बड़ी चेतावनी है — इस दिन भद्रकाल 8:48 बजे से शाम 8:15 बजे तक रहेगा। इस समय के दौरान कोई भी शुभ कार्य — चाहे पूजा हो या व्रत तोड़ना — नहीं करना चाहिए। OBNews.co ने इसे खास तौर पर चेताया है: "इस बार व्रत भद्रकाल के छाया में है, इसलिए पूजा में अत्यधिक सावधानी बरतें।"
इसी तरह, व्रत तोड़ने का शुभ समय (परणा मुहूर्त) 9 फरवरी, 2025 को सुबह 7:04 बजे से 9:17 बजे तक है। इससे पहले व्रत तोड़ना निषेध है। यह नियम बहुत सख्त है — ऐसा माना जाता है कि इसे न तोड़ें, न उल्लंघन करें।
पूजा की विधि: क्या करें, क्या न करें
जया एकादशी के दिन व्रत का आधार है — भोजन और पानी दोनों का त्याग। यह एक पूर्ण उपवास है। पूजा के लिए सुबह शुद्ध होकर विष्णु की मूर्ति या शलिग्राम के सामने तुलसी के पत्ते चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद विष्णु सहस्रनाम का जाप किया जाता है। OBNews.co के अनुसार, इस दिन चार्ट किए गए सात विशेष मंत्रों का जाप भी किया जा सकता है, जिनका अनुसरण करने से सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं।
व्रत का फल अपने पूर्वजों को अर्पित करने के लिए भी होता है। Times Now News के अनुसार, इस व्रत के फल को पितरों को देने से वे भूत-प्रेत रूप से मुक्त होते हैं और स्वर्गीय लोक को प्राप्त करते हैं। एक कथा कहती है कि कुछ आत्माएँ जिन्हें भूत बनाया गया था, उन्हें जया एकादशी के व्रत के बल से विष्णु ने उनके रूप को सुंदर बना दिया और उन्हें स्वर्ग लौटा दिया।
क्यों है यह एकादशी खास?
जया एकादशी, माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। यह फरवरी 2025 की पहली एकादशी है — और इसका अर्थ है कि इस वर्ष के आध्यात्मिक रास्ते की शुरुआत इसी दिन से होती है। Shri Ram Temple.org.in के अनुसार, एकादशी देवी को भगवान विष्णु ने वरदान दिया था: "जो व्यक्ति एकादशी का व्रत रखता है, उसे जीवन में कभी कुछ नहीं कम होता।"
इस व्रत की शक्ति केवल इस जन्म तक ही सीमित नहीं है। यह अगले सात जन्मों के पापों को भी मिटा देता है। यही कारण है कि इसे विशेष रूप से वृद्ध लोग, अकेले रहने वाले, और जिनके घर में आर्थिक संकट है, वे इसे विशेष रूप से मनाते हैं।
2025 में अन्य एकादशियाँ: एक नजर
इस वर्ष कुल 24 एकादशियाँ हैं। जया एकादशी के बाद 25 जनवरी को शत्तिला एकादशी आएगी। फिर 5 नवंबर को तुलसी शलिग्राम विवाह का त्योहार मनाया जाएगा — जो चातुर्मास के समापन का संकेत है। यह सब बताता है कि एकादशी केवल एक दिन का व्रत नहीं, बल्कि एक वर्ष भर के आध्यात्मिक चक्र का हिस्सा है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
जया एकादशी के दिन तुलसी के बिना पूजा करना ठीक है?
नहीं, तुलसी के बिना विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है। पुराणों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भगवान विष्णु तुलसी के बिना कोई अर्पण स्वीकार नहीं करते। यह न केवल एक रिवाज है, बल्कि आध्यात्मिक नियम है। तुलसी के बिना पूजा करने से व्रत का फल नहीं मिलता।
भद्रकाल के दौरान क्या कर सकते हैं?
भद्रकाल (8:48 बजे से 8:15 बजे तक) में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए — न तो पूजा, न ही व्रत तोड़ना। इस समय में आप ध्यान, जाप या गीता पाठ कर सकते हैं। यह अशुभ समय है, लेकिन आत्मिक साधना के लिए बेहतरीन है।
परणा मुहूर्त से पहले व्रत तोड़ने का क्या होगा?
परणा मुहूर्त से पहले व्रत तोड़ने से व्रत का पूरा फल नहीं मिलता। कुछ स्थानों पर इसे अपने दोष के रूप में माना जाता है। यदि आप अनजाने में तोड़ दें, तो अगले दिन व्रत फिर से रखें और विष्णु को क्षमा माँगें।
क्या बिना तुलसी के लक्ष्मी की कृपा पाई जा सकती है?
नहीं। लक्ष्मी और विष्णु एक दूसरे के साथ अटूट रूप से जुड़े हैं। विष्णु की पूजा बिना तुलसी के अधूरी है, और जब विष्णु प्रसन्न होते हैं, तो लक्ष्मी उनके साथ आती हैं। इसलिए लक्ष्मी की कृपा पाने का एकमात्र रास्ता तुलसी के साथ विष्णु की पूजा है।
एकादशी का व्रत कौन रख सकता है?
कोई भी व्यक्ति — चाहे वह वृद्ध हो, युवा हो, महिला हो या पुरुष — यह व्रत रख सकता है। बच्चों और बीमार लोगों के लिए फल और दूध का सेवन अनुमत है। लेकिन यह व्रत निश्चित रूप से शुद्ध भाव से किया जाना चाहिए — बस रिवाज के लिए नहीं।
जया एकादशी के बाद क्या करें?
परणा के बाद एक छोटा सा दान करें — तुलसी के पत्ते, फल या अन्न। यह व्रत का फल बढ़ाता है। अगले दिन से अपने घर में तुलसी की एक नई पौधा लगाएं। यह न केवल आध्यात्मिक शुभता लाएगा, बल्कि घर की वातावरण को भी शुद्ध करेगा।
Ananth SePi
नवंबर 2, 2025 AT 14:40भाई ये जया एकादशी का व्रत तो बस एक तरह का आध्यात्मिक डिजिटल डिटॉक्स है न? एक दिन भोजन नहीं, पानी नहीं, फिर भी तुलसी के पत्ते चढ़ाने का जुनून... असल में ये सब तो मन को शांत करने का एक बहाना है। मैंने पिछले साल इस दिन बिना तुलसी के भी पूजा की थी - और फिर भी मेरा बिजनेस चल रहा है। लेकिन अगर तुलसी के बिना विष्णु अर्पण नहीं लेते तो मुझे लगता है उनकी आँखें भी बहुत अच्छी नहीं हैं।
Gayatri Ganoo
नवंबर 3, 2025 AT 14:31तुलसी के बिना विष्णु की पूजा अधूरी? ये सब अंधविश्वास है। मैंने देखा है कि जिन घरों में तुलसी नहीं है वो भी अमीर हैं। ये जो भद्रकाल की बात कर रहे हैं वो तो किसी ने बनाया है ताकि लोग डरकर उनकी बात मानें। अगर आपको लगता है कि एक घंटे का समय आपके किस्मत पर असर डाल सकता है तो आप जानते हैं कि आप किस दुनिया में रह रहे हैं।
harshita sondhiya
नवंबर 3, 2025 AT 20:07तुलसी के बिना पूजा करने वाले लोग जानते हैं कि वो अपने आप को बेवकूफ बना रहे हैं? ये लोग तो भगवान को बहाने से बहाना बनाकर अपनी लालच को ढकने की कोशिश कर रहे हैं। आप जो भी करें लेकिन तुलसी नहीं तो आपका व्रत धूल में मिल जाएगा। और भद्रकाल? ये तो सिर्फ एक जाल है जिसे आप लोग अपनी निष्क्रियता के लिए बना रहे हैं।
Balakrishnan Parasuraman
नवंबर 5, 2025 AT 05:13ये सब भारतीय संस्कृति की अनमोल विरासत है। तुलसी के बिना पूजा करना अपराध है। हमारे पूर्वजों ने जो नियम बनाए थे वो किसी आधुनिक बकवास के लिए नहीं तोड़े जाने चाहिए। ये जो लोग भद्रकाल को अंधविश्वास कहते हैं, वो अपने आप को बहुत आधुनिक समझते हैं, लेकिन वो तो अपने अपने घर में भी नहीं जानते कि उनके पिताजी का जन्मदिन कब है। भारत की आत्मा यही है - नियम, सम्मान, और विश्वास।
Animesh Shukla
नवंबर 5, 2025 AT 09:29मुझे लगता है कि तुलसी का संबंध विष्णु से बहुत गहरा है - लेकिन क्या ये सब तो बस एक प्रतीक है? क्या हम तुलसी को वास्तविक रूप से नहीं, बल्कि एक शुद्धता, एक अनुशासन, एक अंतर्निहित श्रद्धा के रूप में देख सकते हैं? मैंने एक बार बिना तुलसी के व्रत रखा था - और उस दिन मैंने खुद को बहुत अधिक ध्यान दिया। क्या ये तुलसी के बिना नहीं, बल्कि तुलसी के बारे में सोचने के बाद हुआ? शायद तुलसी तो बस एक चिह्न है - और असली पूजा तो दिल की होती है।
Abhrajit Bhattacharjee
नवंबर 6, 2025 AT 06:50मैं तो बस इतना कहूंगा कि अगर आपको लगता है कि तुलसी के बिना लक्ष्मी आएगी तो आप शायद एक बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। लेकिन अगर आप तुलसी के साथ विष्णु की पूजा करते हैं तो आपको लगता है कि आपने कुछ बड़ा किया - और वो बात सही है। इस तरह की पूजा से आपका दिल शांत होता है, और शांत दिल से आती है समृद्धि। बस इतना ही।
Raj Entertainment
नवंबर 7, 2025 AT 10:07भाई ये तो बहुत अच्छी जानकारी है! मैं तो हर एकादशी को बस एक दिन का आराम मानता हूँ - भोजन नहीं, बस थोड़ा ध्यान, थोड़ा तुलसी का पत्ता, और फिर घर बैठकर बातें करता हूँ। लेकिन अगर आपको लगता है कि भद्रकाल में ध्यान करना बेकार है तो आप गलत हैं। उस वक्त तो मैं गीता पढ़ता हूँ - और बहुत शांत महसूस होता है।
Manikandan Selvaraj
नवंबर 8, 2025 AT 00:05तुलसी के बिना पूजा करना बेकार है और भद्रकाल का डर लगाकर लोगों को भाग्य बेचा जा रहा है। मैंने देखा है कि एक आश्रम वाले इस दिन लाखों रुपये लेते हैं तुलसी के पत्ते बेचकर। ये तो धर्म की बजाय बिजनेस है। जिसके पास तुलसी है वो अमीर हो जाता है। जिसके पास नहीं है वो बेवकूफ बन जाता है।