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ITR ई-वेरिफिकेशन डेडलाइन 7 सितंबर: 15 सितंबर की बढ़ी तारीख भी बेकार क्यों पड़ सकती है

के द्वारा प्रकाशित किया गया Aashish Malethia    पर 6 सित॰ 2025    टिप्पणि(0)
ITR ई-वेरिफिकेशन डेडलाइन 7 सितंबर: 15 सितंबर की बढ़ी तारीख भी बेकार क्यों पड़ सकती है

7 सितंबर के बाद क्या नहीं कर पाएंगे: 30 दिन की ई-वेरिफिकेशन विंडो यहीं बंद होती है

AY 2025-26 के लिए नॉन-ऑडिट मामलों में ITR भरने की आखिरी तारीख 15 सितंबर तक बढ़ चुकी है। लेकिन जिन्होंने अगस्त की शुरुआत या बीच में रिटर्न जमा कर दी थी, उनके लिए असली खतरा 7 सितंबर से शुरू हो जाता है। वजह है 30 दिन का नियम—ITR जमा करने के 30 दिनों के अंदर ITR ई-वेरिफिकेशन करना अनिवार्य है।

सीधा उदाहरण समझिए: अगर आपने ITR 8 अगस्त को फाइल किया, तो ई-वेरिफिकेशन की अंतिम तारीख 7 सितंबर है। अगर आप 7 सितंबर के बाद वेरिफाई करेंगे, तो आपकी रिटर्न ‘इनवैलिड’ मानी जाएगी—मतलब ऐसा मानो रिटर्न फाइल ही नहीं हुई। ऐसे में 15 सितंबर की बढ़ी हुई डेडलाइन आपके काम की तभी होगी जब आप फिर से रिटर्न फाइल करें। पुरानी फाइलिंग को सिर्फ वेरिफाई कर देने से मामला नहीं सधेगा।

याद रखिए, ITR की ड्यू-डेट का एक्सटेंशन सबके लिए एक-सा नहीं होता। ड्यू-डेट का मतलब है रिटर्न जमा करने की अंतिम तारीख; लेकिन 30 दिन का ई-वेरिफिकेशन नियम हर रिटर्न की अपनी फाइलिंग-डेट से गिना जाता है। इसलिए जिसने 10 अगस्त को फाइल किया, उसकी डेडलाइन 9 सितंबर होगी; जिसने 16 अगस्त को फाइल किया, उसकी डेडलाइन 15 सितंबर।

अगर 30 दिन निकल गए तो क्या? दो रास्ते बचते हैं—(1) 15 सितंबर तक फिर से रिटर्न फाइल करें (अब यह ‘बिलेटेड’ मानी जाएगी), या (2) देरी से ई-वेरिफिकेशन के लिए कंडोनेशन (राहत) का अनुरोध करें। कंडोनेशन अपने-आप मंजूर नहीं होता; आमतौर पर सिर्फ वैध कारणों पर मिलता है। इसलिए सुरक्षित विकल्प है—समय पर ई-वेरिफिकेशन कर दें या जरूरत हो तो 15 सितंबर से पहले दोबारा फाइलिंग कर लें।

रिफंड की चाहत है? तब तो और ध्यान दें। ई-वेरिफिकेशन से पहले रिफंड प्रोसेस नहीं होता। रिटर्न इनवैलिड हो गई तो रिफंड का इंतजार लंबा खिंच सकता है और दोबारा फाइलिंग करनी पड़ सकती है।

  • 8 अगस्त को फाइल किया? ई-वेरिफिकेशन की डेडलाइन 7 सितंबर।
  • 12 अगस्त को फाइल किया? डेडलाइन 11 सितंबर।
  • 14 अगस्त को फाइल किया? डेडलाइन 13 सितंबर।
  • 15 सितंबर को फाइल करेंगे? ई-वेरिफिकेशन 15 अक्टूबर तक किया जा सकेगा, क्योंकि 30 दिन का नियम फाइलिंग-डेट से चलता है।

कौन लोग 15 सितंबर की बढ़ी तारीख से बाहर हैं? जिनके खातों का ऑडिट अनिवार्य है (सेक्शन 44AB), ट्रांसफर प्राइसिंग वाले मामले, या ऐसे पार्टनर जिनकी फर्म का ऑडिट होता है—इनकी समयसीमा अलग (आमतौर पर 31 अक्टूबर/30 नवंबर) होती है।

क्या करें अभी: स्टेप-बाय-स्टेप चेकलिस्ट, पेनल्टी और टैक्स का गणित

सबसे पहले e-Filing पोर्टल में लॉग-इन करके ‘ITR Status’ में देखें—“verification pending” दिख रहा है या नहीं। अगर पेंडिंग है तो तुरंत वेरिफाई करें। तरीके आसान हैं:

  • आधार OTP: मोबाइल से एक मिनट में काम खत्म।
  • नेट-बैंकिंग: बैंक खाते से सीधे ई-वेरिफाई।
  • प्री-वैलिडेटेड बैंक/डीमैट EVC: OTP के जरिए वेरिफिकेशन।
  • DSC (डिजिटल सिग्नेचर): प्रोफेशनल/बिजनेस यूजर्स के लिए।

अगर 30 दिन निकल गए हैं और कंडोनेशन लेना नहीं चाहते/नहीं मिल रहा, तो यह प्लान अपनाएं:

  1. 15 सितंबर से पहले फिर से रिटर्न फाइल करें—यह ‘बिलेटेड रिटर्न’ कहलाएगी।
  2. सेक्शन 234F के तहत लेट फीस लगेगी: कुल आय 5 लाख तक है तो ₹1,000; इससे ज्यादा है तो ₹5,000।
  3. अगर आपके ऊपर टैक्स बकाया है, तो सेक्शन 234A के तहत ब्याज लगेगा—माह/महीने के हिस्से के आधार पर, जब तक रिटर्न फाइल नहीं हो जाती।
  4. कैरी-फॉरवर्ड लॉस पर असर: बिजनेस/कैपिटल लॉस सामान्यतः तभी आगे ले जा पाएंगे जब ड्यू-डेट के भीतर वैध रिटर्न फाइल हो। देर से फाइलिंग में ये अधिकार सीमित हो जाते हैं।
  5. बहुत बाद में याद आया? सेक्शन 139(8A) के तहत ‘अपडेटेड रिटर्न’ (ITR-U) दाखिल कर सकते हैं—लेकिन इसमें अतिरिक्त टैक्स 25%/50% लगता है और कई मामलों में रिफंड नहीं मिलता। यह महंगा सौदा है।

एक और कन्फ्यूजन हटाएं—15 सितंबर को एडवांस टैक्स की दूसरी किस्त भी होती है (वर्तमान वित्त वर्ष के लिए)। इसे ITR फाइलिंग/ई-वेरिफिकेशन से अलग रखिए। दोनों अलग कंप्लायंस हैं और अपनी-अपनी डेडलाइन पर चलती हैं।

आगे गलती न हो, इसके लिए ये छोटी-छोटी तैयारी रखें: पोर्टल में ईमेल/मोबाइल अपडेट रखें, बैंक अकाउंट प्री-वैलिडेट रहे, आधार–PAN लिंक हो, और AIS/TIS में दिख रहे TDS/आय के आंकड़े रिटर्न से मैच करें। इससे ई-वेरिफिकेशन के बाद प्रोसेसिंग तेज होती है और रिफंड में देरी नहीं होती।

क्विक चेक—अगर आपने 1 सितंबर को रिटर्न भरी, तो आप 30 सितंबर तक ई-वेरिफाई कर सकते हैं। अगर आपने 14 सितंबर को फाइल की, तो 14 अक्टूबर तक समय है। लेकिन जिन्होंने अगस्त की शुरुआत में फाइल कर दी थी, उनके लिए 7 सितंबर के आसपास 30 दिन पूरे हो रहे हैं—इसीलिए ये तारीख अहम है। एक दिन की देरी भी ‘इनवैलिड’ का ठप्पा लगवा सकती है।