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चिराग पासवान बने खाद्य प्रसंस्करण मंत्री, क्षेत्र में ऊँचाइयों तक ले जाने का वादा

के द्वारा प्रकाशित किया गया Aashish Malethia    पर 12 जून 2024    टिप्पणि(19)
चिराग पासवान बने खाद्य प्रसंस्करण मंत्री, क्षेत्र में ऊँचाइयों तक ले जाने का वादा

चिराग पासवान, बिहार के मशहूर दलित नेता and लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख, ने खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय का कार्यभार संभाल लिया है। यह चिराग पासवान के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक वापसी है और उन्हें इस नई जिम्मेदारी से किसानों को बड़ा लाभ पहुंचाने की उम्मीद है। पासवान ने इस क्षेत्र के विशाल संभावनाओं का उपयोग करने की प्रतिबद्धता जताई है और कहा कि वह देश में प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा देंगे, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं।

पासवान ने हामी भरी कि भारत की खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में प्रदर्शन अन्य विकसित देशों की तुलना में कमजोर है और उन्होंने इस अंतर को कम करने के लिए ठोस कदम उठाने की योजना बनाई है। इसके लिए, वे मंत्रालय के अधिकारियों के साथ संवाद कर शुरुआती 100 दिनों के लिए एक कार्य योजना बनाएंगे। इस योजना का उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को नई ऊँचाइयों तक ले जाना और किसानों की आय को बढ़ाना है।

चिराग पासवान की इस नियुक्ति को नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, खासकर जब लोक जनशक्ति पार्टी ने हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में सभी पांच सीटें जीतने के बाद अपनी ताकत दिखा दी है। इस जीत ने पासवान को बिहार की राजनीति में नया दलित आइकन बना दिया है।

चिराग पासवान ने कहा, 'हमारा उद्देश्य सिर्फ मंत्रालय का प्रबंधन करना नहीं है, बल्कि हम इस क्षेत्र को नई दिशा देने का संकल्प लेते हैं।' उन्होंने यह भी बताया कि खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश सुनिश्चित करने और गांवों तक उनकी पहुंच बनाने के लिए नीतियां बनाई जाएंगी।

भारत में, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में रोजगार के अवसर बढ़ने की संभावना है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। इस पहल के तहत अनेक युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। एक समर्पित नीति और विस्तारित नेटवर्क के माध्यम से यह क्षेत्र किसानों की आय को कईगुना बढ़ा सकता है।

चिराग पासवान का मानना है कि यदि ठोस कदम उठाए जाएं तो अगले कुछ वर्षों में भारत इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सकता है। इस दिशा में उन्होंने मंत्री बनने के तुरंत बाद अधिकारियों के साथ बैठकें भी शुरू कर दी हैं। उनका कहना है कि वे जमीनी स्तर से लेकर उच्च स्तर तक सभी मुद्दों पर ध्यान देंगे ताकि सभी को लाभ पहुंच सके।

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समक्ष चुनौतियां

भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें प्रौद्योगिकी की कमी, अवसंरचना की कमी और लागत की उच्च दरें प्रमुख हैं। पासवान ने बताया कि इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक योजना बनाई जाएगी जोकि सभी पहलुओं को कवर करेगी।

उन्हें यकीन है कि नई योजनाएं और नीतियां इन समस्याओं का समाधान करेंगी और इस क्षेत्र को नई ऊँचाइयों तक ले जाएंगी। इस दिशा में उन्होंने मंत्रालय के अधिकारियों से सुझाव मांगे हैं और एक समर्पित टीम भी गठित की है जोकि इन सभी पहलुओं पर काम करेगी।

किसानों के लिए नया अवसर

खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के नए योजनाओं का उद्देश्य किसानों को सीधे लाभ पहुंचाना है। प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना से किसानों की उपज का सीधा बाजार मिलेगा और उन्हें अच्छी कीमत मिल सकेगी। इससे किसानों की आय में भी वृद्धि होगी और उन्हें आर्थिक मजबूती मिलेगी।

इसके अलावा, पासवान का फोकस किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण देने पर भी होगा ताकि वे अपनी उपज की गुणवत्ता को और बढ़ा सके और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें। इस दिशा में सरकार के विभिन्न योजनाओं को भी समेकित किया जाएगा।

सरकार की प्राथमिकताएं

सरकार की प्राथमिकताएं

नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को प्राथमिकता देने के साथ-साथ इस बात पर भी जोर है कि किसानों की आय को दोगुना किया जाए। इस लक्ष्य को पूरा करने में चिराग पासवान की भूमिका अहम साबित हो सकती है।

पासवान का कहना है कि यह समय की मांग है कि हम अपनी योजनाओं को सुदृढ़ करें और उन्हें तेजी से लागू करें। उन्होंने यह भी वादा किया कि मंत्रालय के सभी संबंधित अधिकारियों और विशेषज्ञों के साथ मिलकर एक सशक्त और व्यापक योजना बनाई जाएगी जोकि न सिर्फ किसानों बल्कि पूरे देश को लाभ पहुंचाएगी।

खाद्य प्रसंस्करण में सरकार की भूमिका

खाद्य प्रसंस्करण में सरकार की भूमिका

सरकार का मुख्य उद्देश्य किसानों को बढ़ती महंगाई और बाजार में अस्थिरता से बचाना है। इसके लिए, प्रसंस्करण इकाइयों के माध्यम से एक स्थिर बाजार का निर्माण किया जाएगा जहां किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य मिल सके।

इस दिशा में, सरकार विशेष पैकेज और सब्सिडी की भी योजना बना रही है ताकि प्रारंभिक निवेश के बोझ से किसान और छोटे उद्यमी बच सकें। चिराग पासवान का मानना है कि यदि प्राथमिक चरण में ही किसानों को मदद मिल जाए तो वे आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा सकते हैं।

पासवान ने शपथ ग्रहण के कुछ ही दिन बाद यह संकेत भी दिया कि वे इस क्षेत्र में वाणिज्यिकरण और प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देंगे ताकि भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सके।

इस सबके बीच, लोक जनशक्ति पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में भी खुशी की लहर देखी जा रही है। पार्टी के नेताओं का मानना है कि चिराग पासवान की यह नई जिम्मेदारी एक नए युग की शुरुआत करेगी और बिहार की राजनीति में एक नई दिशा तय करेगी।

19 टिप्पणि

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    Mali Currington

    जून 13, 2024 AT 14:30

    अच्छा हुआ कि कोई दलित नेता मंत्री बना, वरना फिर से किसानों की बातें सिर्फ चुनाव से पहले ही होतीं।

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    Anand Bhardwaj

    जून 14, 2024 AT 19:43

    मंत्री बने हैं, लेकिन अभी तक कोई रिपोर्ट नहीं आई कि उन्होंने एक भी फैक्ट्री का दौरा किया है। बातें तो बहुत अच्छी हैं, लेकिन असली काम तो जमीन पर होता है।

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    Rishabh Sood

    जून 15, 2024 AT 04:05

    इस नियुक्ति के माध्यम से एक गहरा सामाजिक संकेत दिया गया है - जिस वर्ग को लंबे समय तक विस्थापित किया गया, उसे अब राष्ट्रीय नीति निर्माण के शीर्ष पर बैठाया जा रहा है। यह केवल एक पद नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक विपरीत बिंदु है जहाँ शक्ति का पुनर्वितरण शुरू हो रहा है। यह एक नए सामाजिक वार्तालाप की शुरुआत है, जिसमें अतीत के अपमान को स्वीकार करना और उनके लिए भविष्य की रचना करना एक ही दो भुजाएँ हैं।

    जब तक हम उन गाँवों के लोगों की आवाज़ को नीतिगत स्तर पर नहीं सुनेंगे, तब तक ये सब केवल एक नाटक होगा। चिराग पासवान के पास एक अनूठा अवसर है - वह न केवल एक मंत्री बन सकते हैं, बल्कि एक नए नैतिक ढांचे के निर्माता भी।

    इस क्षेत्र में तकनीकी अप्राप्यता का मुद्दा अक्सर अवसंरचना के अभाव के रूप में देखा जाता है, लेकिन वास्तविक समस्या तो नीतिगत अनुप्रयोग की कमी है। जिन लोगों ने इस क्षेत्र में निवेश किया है, उन्हें अक्सर बाजार की जटिलताओं के कारण विफलता का सामना करना पड़ता है।

    यहाँ एक अहम बिंदु है: प्रसंस्करण इकाइयों का निर्माण तो संभव है, लेकिन उनके साथ एक स्थानीय ज्ञान प्रणाली का समाकलन अनिवार्य है। किसानों की विरासत, उनकी भाषा, उनके उत्पादन चक्र - ये सब एक व्यवहार्य नीति के आधार हैं।

    अगर इस नीति को बिना इन तत्वों के बनाया जाए, तो यह एक निर्माण की तरह होगा जिसका आधार बालू पर है। यह एक ऐसा अवसर है जिसे हम खो सकते हैं, या एक नए युग की नींव रख सकते हैं।

    यह एक ऐसा क्षण है जहाँ शक्ति का उपयोग न्याय के लिए होना चाहिए, न कि जनता को धोखा देने के लिए।

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    Saurabh Singh

    जून 17, 2024 AT 01:14

    ये सब बकवास है। चिराग पासवान ने क्या किया है? एक भी फैक्ट्री नहीं बनवाई, एक भी गाँव में गया नहीं, और अब ये नीति की बातें कर रहा है? इन लोगों को तो सिर्फ चुनाव में जीतने के लिए मंत्री बनाया जाता है। अब देखोगे, एक साल में ये फिर से अपने राज्य में वापस चले जाएंगे।

    किसानों की आय दोगुनी करने का वादा? तुम्हारी माँ की आय दोगुनी हो जाए तो बता देना।

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    INDRA MUMBA

    जून 17, 2024 AT 23:21

    यह एक अद्भुत अवसर है - एक संरचनात्मक अंतराल को भरने का। खाद्य प्रसंस्करण एक बहुआयामी इकोसिस्टम है जिसमें जैविक विविधता, डिजिटल इंटीग्रेशन, लोकल वैल्यू चेन और सामुदायिक सहभागिता का समन्वय होना चाहिए। अगर हम इसे सिर्फ एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में देखेंगे, तो हम एक अत्यधिक जटिल और अत्यंत संवेदनशील जैविक-आर्थिक संबंध को नष्ट कर देंगे।

    प्रसंस्करण इकाइयों को गाँवों के बीच डिस्ट्रीब्यूटेड नेटवर्क के रूप में डिज़ाइन किया जाना चाहिए - न कि केंद्रीकृत कॉर्पोरेट हब्स के रूप में। यह एक डिसेम्बल्ड अर्थव्यवस्था है जिसमें ज्ञान, उत्पादन और वितरण का एक अंतर्निहित अनुक्रम है।

    हमें एक नए प्रकार के फैलोशिप प्रोग्राम की आवश्यकता है - जहाँ युवा इंजीनियर्स, एग्रो-एकोलॉजिस्ट्स और ट्रेडिशनल फार्मर्स एक साथ बैठकर एक साझा डिजिटल लैब बनाएं। यह एक नई प्रकार की कृषि-उद्योग सांस्कृतिक संस्कृति की शुरुआत होगी।

    सब्सिडी तो बहुत अच्छी है, लेकिन एक ज्ञान-आधारित इकोसिस्टम का निर्माण उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। जब एक गाँव का एक छोटा उद्यमी अपनी आलू की चिप्स को ब्रांड करने की क्षमता रखता है, तो वह एक नई आर्थिक पहचान बन जाता है।

    हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि खाद्य प्रसंस्करण केवल एक उद्योग नहीं, बल्कि एक सामाजिक संवाद है। इसे नीति के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवनशैली के रूप में बनाया जाना चाहिए।

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    RAJIV PATHAK

    जून 18, 2024 AT 05:04

    अरे भाई, ये सब लोग तो बस ट्रेंड में आ गए हैं। चिराग पासवान को तो बस एक नाम चाहिए था - दलित, बिहारी, लोक जनशक्ति पार्टी का बेटा। ये सब नीतियाँ तो बस विज्ञापन के लिए बनाई गई हैं।

    क्या आपको पता है कि इस देश में एक भी फैक्ट्री जो अच्छी तरह से काम कर रही है, उसके पास एक अच्छा लाइसेंस है? नहीं। वो सब ब्रिक्स और गाँव के बाहर के बाजार में बेच रहे हैं।

    ये वादे सुनकर मुझे लगता है कि ये सब एक नए रंग का ब्रांडिंग है - जिसे लोग खरीद लेंगे।

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    Nalini Singh

    जून 18, 2024 AT 08:37

    इस नियुक्ति का सांस्कृतिक अर्थ अत्यंत गहरा है। एक दलित नेता का खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनना, जिसका क्षेत्र सीधे ग्रामीण भारत के जीवन से जुड़ा है, यह एक ऐतिहासिक रूपांतरण का प्रतीक है। यह न केवल एक पद का विस्तार है, बल्कि एक विशिष्ट अनुभव के आधार पर नीति निर्माण की ओर एक प्रगतिशील कदम है।

    हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य प्रसंस्करण की रीतियाँ अत्यंत समृद्ध हैं - जैसे दही का निर्माण, आम की चटनी, आलू की बर्फी, नींबू का जैम। ये सब उप-संस्कृतियाँ हैं जिन्हें नीति द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए।

    यदि इस नीति में ऐसे स्थानीय ज्ञान को समाहित किया जाए, तो यह एक वैश्विक उदाहरण बन सकता है।

    हमारी आर्थिक नीतियाँ अक्सर उद्योग के आधार पर बनाई जाती हैं, लेकिन यहाँ हमें समाज के आधार पर नीति बनाने की आवश्यकता है।

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    Sonia Renthlei

    जून 20, 2024 AT 01:34

    मैंने बिहार के एक गाँव में एक छोटी सी फैक्ट्री देखी थी - जहाँ एक महिला ने अपने घर के बाहर आलू की चिप्स बनाई थीं। उसने अपनी बेटी को बेचने के लिए एक फोन पर लिस्ट कर दिया था। एक दिन में उसे 2000 रुपये मिलते थे। यही तो वास्तविक खाद्य प्रसंस्करण है।

    हम इसे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि हजारों ऐसे छोटे उद्यमों को समर्थन देना चाहिए।

    मैंने देखा है कि जब किसानों को प्रशिक्षण मिलता है, तो वे अपनी उपज की गुणवत्ता में बहुत सुधार कर लेते हैं। लेकिन जब उन्हें बाजार नहीं मिलता, तो वे हार जाते हैं।

    हमें एक ऐसा नेटवर्क बनाना चाहिए जहाँ एक गाँव की महिला अपने चिप्स को एक शहर के ग्राहक तक पहुँचा सके।

    यह सिर्फ एक नीति नहीं, यह एक जीवन शैली है।

    मैं चाहती हूँ कि चिराग पासवान इस बात को समझें - यह बड़े इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स की बात नहीं, यह छोटे-छोटे लोगों की आवाज़ की बात है।

    हमें उन लोगों को सुनना होगा जो यह सब कर रहे हैं - न कि उन लोगों को जो बस बैठकों में बैठे हैं।

    मैं उम्मीद करती हूँ कि वे इसे बहुत गंभीरता से लेंगे।

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    Aryan Sharma

    जून 20, 2024 AT 07:07

    ये सब फरेब है। ये मंत्री बने हैं, लेकिन उनके पास एक भी फैक्ट्री नहीं है। ये सब तो बस एक बड़ा धोखा है।

    जब तक नेताओं के घरों में खाना बनता रहेगा, तब तक किसानों को कुछ नहीं मिलेगा।

    ये सब चुनाव के बाद भूल जाएंगे। अब तो बस नाम के लिए चल रहे हैं।

    मैं तो बस देख रहा हूँ कि ये लोग कब फिर से अपने राज्य में चले जाते हैं।

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    Devendra Singh

    जून 21, 2024 AT 20:14

    इस नियुक्ति को एक अत्यंत विचित्र तरीके से देखा जा रहा है। चिराग पासवान के पास कोई व्यावहारिक अनुभव नहीं है - न तो उन्होंने कभी खाद्य उद्योग में काम किया है, न ही उन्होंने कभी एक फैक्ट्री का दौरा किया है। यह एक राजनीतिक नियुक्ति है, न कि एक पात्रता-आधारित।

    यह एक नीतिगत विफलता है। एक ऐसा मंत्री जिसकी एक भी तकनीकी योग्यता नहीं है, उसे एक जटिल और उच्च-तकनीकी क्षेत्र का नेतृत्व करने के लिए नहीं चुनना चाहिए।

    इससे पहले कि हम इसे एक सामाजिक विजय के रूप में देखें, हमें यह जाँचना चाहिए कि क्या यह वास्तव में देश के लिए लाभदायक है।

    यह एक नियुक्ति नहीं, एक अपमान है।

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    UMESH DEVADIGA

    जून 22, 2024 AT 08:26

    ये सब बातें सुनकर मुझे बहुत दुख हो रहा है। किसानों को तो हमेशा धोखा दिया जाता है। एक बार वादा करते हैं, फिर भूल जाते हैं।

    मैं एक गाँव में रहता हूँ। वहाँ एक आदमी ने अपनी फसल बेचने के लिए एक बैंक लोन लिया था। अब उसका घर बेच दिया गया है।

    ये सब वादे तो बस टीवी पर चलते हैं।

    मैं बस यही चाहता हूँ कि कोई एक बार असली जमीन पर आए।

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    Roshini Kumar

    जून 23, 2024 AT 06:32

    चिराग पासवान बने मंत्री... अरे यार ये तो बस नाम के लिए है... अब तो देखोगे वो एक भी फैक्ट्री नहीं बनवाएंगे... और फिर बोलेंगे कि ये सब नहीं हो पाया... ये सब तो बस चुनाव के लिए बनाया गया है... अब तो बस बातें करते रहेंगे... ये लोग तो बस एक बार आ जाते हैं और फिर गायब... अब तो बस देखोगे कि ये लोग कब फिर से अपने राज्य में चले जाते हैं... अरे भाई ये तो बस एक नाम है... नहीं तो कोई असली नीति नहीं है...

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    Siddhesh Salgaonkar

    जून 23, 2024 AT 23:45

    अरे भाई ये सब तो बस ब्रांडिंग है 😎

    चिराग पासवान को तो बस एक नाम चाहिए था - दलित, बिहारी, लोक जनशक्ति का बेटा 🤡

    अब देखोगे, एक साल में ये फिर से अपने राज्य में चले जाएंगे।

    किसानों की आय दोगुनी करने का वादा? तुम्हारी माँ की आय दोगुनी हो जाए तो बता देना 😂

    ये सब तो बस एक नया रंग का ब्रांडिंग है - जिसे लोग खरीद लेंगे 🛒

    मैंने तो देख लिया है - ये सब लोग बस ट्रेंड में आ गए हैं।

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    Arjun Singh

    जून 24, 2024 AT 08:25

    ये नीति तो बस एक नए लैंडस्केप की ओर एक आधुनिक अप्रोच है - डिस्ट्रीब्यूटेड फूड प्रोसेसिंग नेटवर्क, डिजिटल वैल्यू चेन, और लोकल एग्रो-इंडस्ट्रियल इकोसिस्टम।

    अगर हम इसे सिर्फ एक प्रोजेक्ट के रूप में देखेंगे, तो यह फेल हो जाएगा।

    हमें एक नए तरीके से सोचना होगा - एक नई राजनीति, एक नया अर्थव्यवस्था, एक नया जीवन।

    यह एक ट्रांसफॉर्मेशन है।

    अगर ये नीति असली है, तो यह भारत के लिए एक नया युग शुरू कर देगी।

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    yash killer

    जून 25, 2024 AT 10:01

    भारत को अब अपने खाद्य प्रसंस्करण को दुनिया के सामने दिखाना होगा! ये लोग बस बातें करते रहे हैं! अब तो बस काम करो! देश का नाम रोशन करो! ये वादे तो बस बकवास हैं! किसानों की आय दोगुनी करो! ये नहीं तो बस जाने दो! भारत माता की जय!

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    Ankit khare

    जून 26, 2024 AT 08:37

    ये सब तो बस एक नया धोखा है। चिराग पासवान के पास कोई अनुभव नहीं है, फिर भी उन्हें मंत्री बनाया गया। ये नीति क्या है? बस एक बड़ा नाम और एक बड़ा वादा।

    इस देश में एक भी फैक्ट्री जो अच्छी तरह से काम कर रही है, उसके पास एक अच्छा लाइसेंस है? नहीं।

    ये सब तो बस चुनाव के लिए बनाया गया है।

    अब तो बस देखोगे कि ये लोग कब फिर से अपने राज्य में चले जाते हैं।

    किसानों की आय दोगुनी करने का वादा? तुम्हारी माँ की आय दोगुनी हो जाए तो बता देना।

    ये सब तो बस ब्रांडिंग है।

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    Saurabh Singh

    जून 27, 2024 AT 21:06

    अरे यार, ये सब बातें तो बस चुनाव के बाद भूल जाती हैं। इन्होंने तो एक भी फैक्ट्री नहीं बनवाई। अब बस बातें कर रहे हैं।

    मैंने बिहार के एक गाँव में एक आदमी को देखा था - उसकी फसल बर्बाद हो गई, लेकिन उसके पास एक भी फैक्ट्री नहीं थी।

    अब तो बस देखोगे कि ये लोग कब फिर से अपने राज्य में चले जाते हैं।

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    INDRA MUMBA

    जून 29, 2024 AT 12:08

    अगर हम इसे सिर्फ एक प्रोजेक्ट के रूप में देखेंगे, तो यह फेल हो जाएगा।

    लेकिन अगर हम इसे एक जीवन शैली के रूप में देखें, तो यह भारत के लिए एक नया युग शुरू कर देगा।

    हमें एक ऐसा नेटवर्क बनाना होगा जहाँ एक गाँव की महिला अपने चिप्स को एक शहर के ग्राहक तक पहुँचा सके।

    यह एक नई आर्थिक पहचान है।

    मैं उम्मीद करती हूँ कि चिराग पासवान इसे समझेंगे।

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    Sonia Renthlei

    जुलाई 1, 2024 AT 09:56

    मैंने तो बिहार के एक गाँव में एक महिला को देखा था - उसने अपने घर के बाहर आलू की चिप्स बनाई थीं। उसकी बेटी ने फोन पर लिस्ट कर दिया था।

    एक दिन में उसे 2000 रुपये मिलते थे।

    यही तो वास्तविक खाद्य प्रसंस्करण है।

    हमें बड़े प्रोजेक्ट्स की बात नहीं, छोटे उद्यमों की बात करनी चाहिए।