बस्तर में नक्सल आतंक के खिलाफ निर्णायक लड़ाई
छत्तीसगढ़ के डिप्टी CM विजय शर्मा ने बस्तर से नक्सलवाद खत्म करने के लिए एक साल की कड़ी डेडलाइन तय कर दी है। उनके इस बयान ने इलाके में चर्चा छेड़ दी है। नक्सल प्रभावित बस्तर में दशकों से लोग हिंसा और डर की जिंदगी जी रहे हैं, लेकिन अब सरकार पूरी ताकत के साथ मोर्चा संभाल चुकी है।
विजय शर्मा ने मीडिया से साफ कहा कि सरकार नक्सलियों से बिना किसी शर्त के सीधे संवाद के लिए तैयार है। वह चाहते हैं कि कोई भी प्रतिनिधि ज्यादा औपचारिकता या लिखापढ़ी में समय न गंवाए—ज़रूरत हो तो डिप्टी CM से सीधे संपर्क करे। उनके मुताबिक, अगर कोई एक भी नक्सली सरेंडर करता है या वार्ता करना चाहता है, तो सरकार उसे मौका देगी। इस फैसले के पीछे बस्तर में तेजी से बदलते माहौल का भी हाथ है। आम जनता अब नक्सलियों के खिलाफ खुलकर बोलने लगी है और सभी शांति चाहते हैं।

सरेंडर नीति और सख्ती—साथ-साथ
आखिरी कुछ महीनों में नक्सली संगठनों ने सरकार को चिट्ठियां भेजकर बातचीत की कोशिश की है, लेकिन वे चाहते हैं कि सुरक्षा बल कार्रवाई बंद करें और शिविर न बनाएं। इस पर विजय शर्मा ने दो टूक जवाब दिया—सरकार किसी भी हाल में नक्सली हिंसा सहन नहीं करेगी और सुरक्षाबल की तैनाती जारी रहेगी। यानी नक्सलवादी हथियार छोड़ दें, तभी बिना शर्त बातचीत संभव है।
शासन की रणनीति साफ है—जो हथियार छोड़कर मुख्यधारा में आना चाहता है, उसके लिए राज्य सरकार की पुनर्वास नीति तैयार है। इसमें राहत, रोजगार, और पुनर्वास का वादा किया जाता है। यहां तक कि सरेंडर करने वालों को आर्थिक मदद और सुरक्षा का भरोसा भी दिया जा रहा है।
राज्य सरकार बस्तर में चौतरफा अभियान चला रही है। एक ओर सुरक्षा बल लगातार नक्सली ऑपरेशनों पर नजर बनाए हुए हैं, तो दूसरी ओर गांव-गांव जाकर जनता को भरोसा दिया जा रहा है कि बदलाव मुमकिन है। इस इलाके में हाल के महीनों में कई नए सुरक्षा कैंप खोले गए हैं और सड़कें व अन्य बुनियादी सुविधाएं भी तेजी से बढ़ाई जा रही हैं।
डिप्टी CM के बयान के बाद सियासी माहौल भी गर्माया है। नक्सल प्रभावित गांवों में शराबबंदी, शिक्षा सुधार, स्वास्थ्य सेवाओं जैसी मूलभूत जरूरतों पर भी अब ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है।
- बस्तर में अब आम लोग खुलकर नक्सल हिंसा के खिलाफ हैं।
- सुरक्षा बलों के ऑपरेशन पहले से ज्यादा तेज और सटीक हुए हैं।
- सरकार की नई रणनीति में संवाद, विकास और सख्ती तीनों पर जोर है।
- सरेंडर करने वालों को आर्थिक मदद, पुनर्वास और सुरक्षा की गारंटी दी जा रही है।
नक्सल गतिविधियों में कमी और लोगों का बढ़ता भरोसा सरकार को ताकत दे रहा है। अब देखने वाली बात होगी कि अगले 12 महीनों में बस्तर का हाल कितना बदलता है और क्या डिप्टी CM का वादा जमीन पर उतरता है या नहीं।
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