चैत्र नवरात्रि के पाँचवे दिन की पंथी महत्ता
बुधवार, 2 अप्रैल 2025 को चैत्र नवरात्रि का पाँचवाँ दिन पड़ता है और इस दिन को माँ स्कंदमाता के नाम से पूजा जाता है। स्कंदमाता को मातृत्व, पोषण और साहस की देवी माना जाता है। चार भुजाओं, तीन आँखों और सिंह पर सवार इस रूप में वह शिशु कार्तिकेय (स्कंद) को गोद में लिये होती है, जो उसके निस्वार्थ प्रेम और दृढ़ रक्षा की शक्ति को दर्शाता है। इस दिन को किस कारण से इतना खास माना जाता है, इसका संबंध नवरात्रि के गहरे आध्यात्मिक अर्थसे जुड़ा है, जहाँ माँ दुर्गा के नौ रूपों में से यह रूप विशेष रूप से मां का पोषण‑परायण पक्ष उजागर करता है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार स्कंदमाता का आध्यात्मिक घर विषुद्धा (कंठ) चक्र में स्थित है। यह चक्र हमारी संचार क्षमता, स्पष्टता और अभिव्यक्ति से जुड़ा है। जब भक्त इस चक्र को शुद्ध करते हैं तो उन्हें निर्णय‑लेने में स्पष्टता, चुनौतियों में धीरज और जीवन में नई दिशा मिलती है। इस प्रकार स्कंदमाता न केवल मातृत्व का आदर्श प्रस्तुत करती है, बल्कि आध्यात्मिक बुद्धि की प्राप्ति का मार्ग भी खोलती है।
शुभ समय, रंग और पूजा विधि
नवरात्रि के इस विशेष दिवस की शुरुआत ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 5 बजे) से करनी चाहिए। माना जाता है कि इस क्षण में ऊर्जा सर्वाधिक शुद्ध होती है और मन के भीतर आध्यात्मिक जागरूकता का उभरना आसान हो जाता है। सुबह जल्दी उठकर स्नान‑स्नान कर, शरीर व मन को शुद्ध करना प्रथम कर्तव्य है।
इस दिन पहना जाने वाला मुख्य रंग ‘हरित’ (हरा) है। हरा रंग प्रकृति, नवजीवन, उन्नति और शांति का प्रतीक माना जाता है। भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे इस रंग के नए वस्त्र धारण करें – चाहे वह साड़ी, धोती या सूट हो। हरे वस्त्र न केवल वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा लाते हैं, बल्कि मन को भी ताजगी से भर देते हैं।
पूजा के दौरान प्रतिमा या चित्र के सामने एक लाल कमल रखकर, दोशफल (जैसे अक्षर, अंकों के साथ) और नीचे छोटा घड़ा जल रखें। इस पवित्र जल में तुलसी, पुदीना और गुलाब की पंखुड़ियाँ डालें। फिर स्कंदमाता को अर्पित करें:
- कमल के फूल – शुद्धता का प्रतीक
- सेब, अमरूद, मौसमी फल – पोषण और मातृत्व की भावना को उजागर करने के लिये
- मर्यादा‑सिद्ध मिठाइयाँ जैसे ‘रसमलाई’ या ‘केसरिया लड्डू’ – मीठा जीवन, मधुर संबंधों का संकेत
- भांग या तुलसी के पत्ते – देवी के पवित्रता को सम्मानित करने हेतु
प्राथना के क्रम में ‘ॐ स्कंद मातायै नमः’ का विशेष जप किया जाता है। इसके बाद 108 बार ‘दुर्गा सप्तशती’ या ‘श्री स्कंदमाता स्तोत्रा’ का पाठ किया जा सकता है। यदि संभव हो तो समूह में ‘भजन’ या ‘कीर्तन’ भी आयोजित करें, जिससे सामुदायिक ऊर्जा का साकारुप भागीदारी मिलती है।
नवरात्रि के अन्य दिनों की तरह इस दिन भी उपवास रखने वाले कई लोग फल‑हारी उपवास (केवल फल, दूध और शहद) का पालन करते हैं। ऐसा उपवास न केवल शारीरिक शुद्धि लाता है, बल्कि मन की एकाग्रता को भी बढ़ाता है। ध्यानी लोग इस समय में ध्यान अथवा ‘जपमाला’ के साथ ध्यान लगा सकते हैं, जिससे उनका मन स्कंदमाता के आशीर्वाद को सहजता से ग्रहण कर सके।
इस पावन अवसर का महत्व सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दोनों आयामों में गहरा है। नवरात्रि की कथा में देवी दुर्गा का महिषासुर के साथ युद्ध और नौ रातों तक जीत का उल्लेख है, जो अंधकार पर प्रकाश की विजयी गाथा है। प्रत्येक दिन दुर्गा के किसी न किसी रूप को समर्पित किया जाता है, और स्कंदमाता मातृत्व‑सुरक्षा का प्रतीक होने के नाते इस श्रृंखला में एक विशेष जगह रखती है। यह न केवल सामान्य भक्तों के लिए बल्कि उन लोगों के लिये भी प्रेरणा है जो जीवन‑संकट में शांतिक और बुद्धि की तलाश में होते हैं।
समग्र रूप से, चैत्र नवरात्रि का पाँचवाँ दिन हमारे भीतर के मातृत्व, पोषण और संरक्षण की भावनाओं को जागृत करता है। हरे रंग के वस्त्र, ब्रह्ममुहूर्त की जागरण, तथा स्कंदमाता की प्रतिमा के सामने किए जाने वाले अनुष्ठान इस ऊर्जा को दैनिक जीवन में स्थायी बनाने के लिए महत्वपूर्ण साधन हैं। इस पावन दिन को सही ढंग से मनाकर हम न केवल अपनी आंतरिक शक्ति को पुनः प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि सामुदायिक सौहार्द और आध्यात्मिक उत्थान के लिये भी योगदान दे सकते हैं।
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