दो दिन में 6.6 ट्रिलियन डॉलर का सफाया: क्या हुआ, कैसे हुआ
दुनिया की स्टॉक मार्केट्स ने 7 अप्रैल 2025 को वह दिन देखा जिसे अब बाजार Black Monday 2025 कह रहे हैं। सिर्फ 48 घंटे में 6.6 ट्रिलियन डॉलर की वैल्यू मिट गई—इतिहास का सबसे बड़ा दो दिन का नुकसान। वजह साफ थी: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की लगभग 180 देशों पर व्यापक टैरिफ की घोषणा और उसके जवाब में चीन का कड़ा रिटेलिएशन। ट्रेड वॉर का डर, मंदी की आशंका और ब्याज दरों, सप्लाई चेन व कॉर्पोरेट कमाई पर दबाव—सब एक साथ सामने आ गया।
तस्वीर जल्दी बिगड़ी। 2 अप्रैल की दोपहर ट्रंप की घोषणा के तुरंत बाद अमेरिकी फ्यूचर्स धड़ाम: S&P 500 फ्यूचर्स 3.9% नीचे, Nasdaq-100 फ्यूचर्स 4.7% फिसले और डॉव फ्यूचर्स 2.7% टूटे। अगले दो कारोबारी दिनों में यह घबराहट समूचे बोर्ड पर फैल गई।
- 3 अप्रैल: नैस्डैक कंपोजिट 1,600 अंक गिरा—कोविड-19 के शुरुआती दौर के बाद सबसे खराब सेल-ऑफ। S&P 500 में 4.84% की गिरावट और डॉव में 1,679 अंक (3.98%) की स्लाइड। स्मॉलकैप-हैवी रसेल 2000 ने 6.59% की गिरावट के साथ बेयर मार्केट में एंट्री कर ली।
- 4 अप्रैल: चीन ने 34% का जवाबी टैरिफ लगाया। डॉव 2,231 अंक (5.5%) टूटा, S&P 500 5.97% लुढ़का और नैस्डैक 5.8% गिरा—यानी प्रमुख इंडेक्सेज ने बेयर टेरिटरी ऑफिशियली छू ली। सिर्फ दो सत्रों में डॉव 4,000 से ज्यादा अंक (-9.48%) खो बैठा, S&P 10% और नैस्डैक 11% नीचे।
- वॉल स्ट्रीट का 'फियर गेज' VIX 15 अंक उछलकर 45.31 पर—2020 क्रैश के बाद सबसे ऊंचा। क्रूड ऑयल 7% गिरकर 2021 के स्तरों के पास।
- 7 अप्रैल: एशिया-यूरोप में झटके तेज हुए। जापान और ताइवान में मार्च 2020 के बाद पहली बार सर्किट ब्रेकर लगे। टोक्यो का निक्केई 18 महीने के निचले स्तर पर और बैंकिंग शेयर तीन दिनों में करीब 25% तक ध्वस्त। भारत में प्री-ओपन में इंडेक्स 5% से ज्यादा नीचे दिखे।
नैस्डैक कंपोजिट 32 ट्रेडिंग सेशंस में 20,204 से 17,398 पर आ गया—करीब 14% की गिरावट। मार्केट कमेंटेटर जिम क्रेमर ने 6 अप्रैल को साफ चेतावनी दी—यदि टैरिफ रणनीति नरम नहीं हुई और नियम मानने वाले देशों-कारोबारों को राहत नहीं मिली, तो 1987 वाले ब्लैक मंडे जैसा पैटर्न (तीन दिन की गिरावट के बाद सोमवार को 22% क्रैश) दोहर सकता है।
यह 1987 से अलग क्यों है? तब कंप्यूटराइज्ड ट्रेडिंग और पोर्टफोलियो इंश्योरेंस ने सेलिंग का फीडबैक लूप बना दिया था। 2025 में ट्रिगर स्पष्ट रूप से मैक्रो है—टैरिफ, ग्लोबल सप्लाई शॉक्स और कमाई के अनुमानों की तेज कटौती का डर। यानी यह कहानी सिस्टम ग्लिच की नहीं, नीति-जोखिम (पॉलिसी रिस्क) की है।
टैरिफ असर की जल्दी पड़ताल करें। इम्पोर्ट महंगा होता है, कॉस्ट पुश इन्फ्लेशन का खतरा बढ़ता है, कॉर्पोरेट मार्जिन दबते हैं और ग्लोबल वैल्यू-चेन में बाधाएं आती हैं। एक्सपोर्ट-ड्रिवन इकॉनमीज पर सीधी चोट लगती है, जो ऑर्डर बुक्स को हल्का कर सकती है। निवेशक यह सब डिस्काउंट करने लगे—कमाई के अनुमान घटे, प्राइस-टू-अर्निंग्स रीरेट हुआ और हाई वैल्यूएशन स्टॉक्स पर सबसे ज्यादा मार पड़ी।
सेक्टर-वाइज नुकसान भी तीखा था। टेक और सेमीकंडक्टर्स—जो क्रॉस-बॉर्डर सप्लाई पर टिके हैं—बड़ी गिरावट में रहे। बैंकों को डबल धक्का मिला: ग्रोथ स्लोडाउन की आशंका और क्रेडिट कॉस्ट बढ़ने का डर। इंडस्ट्रियल्स और ऑटो में टैरिफ की सीधी मार दिखी। स्मॉलकैप्स, जिनकी बैलेंस शीट कमजोर होती है, बिकवाली के केंद्र बने।
वॉलेटिलिटी की भाषा में कहें तो 45 के VIX का मतलब है कि बाजार अगले 30 दिनों के लिए डबल-डिजिट स्विंग्स की कीमत लगा रहा है। तेल की 7% गिरावट बताती है कि ट्रेड-टैरिफ के अलावा मंदी की थीम भी ट्रेड हो रही है। आमतौर पर ऐसे समय में सेफ-हेवन में शिफ्ट दिखता है—ट्रेजरी, कैश, गोल्ड—और उभरते बाजारों पर डॉलर स्ट्रेंथ का दबाव बढ़ता है।
अमेरिकी बाजारों में एक और रिकॉर्ड बना: डॉव ने कई दिनों तक हर सत्र में 1,500 से ज्यादा अंकों का नुकसान दिखाया—ऐसा सिलसिला पहले नहीं देखा गया था। S&P 500 के लिए यह अब तक का सबसे खराब दो दिन साबित हुआ। इतिहास में डॉट-कॉम बबल और कोविड-क्रैश की रफ्तार भले तेज रही हो, पर दो दिनों में 6.6 ट्रिलियन डॉलर का वाष्पीकरण अपने आप में नई मिसाल है।
भारत, एशिया और यूरोप पर असर; आगे की राह क्या हो सकती है
एशिया-प्रशांत में शॉकवेव सबसे पहले एक्सपोर्ट-हैवी मार्केट्स में दिखा। जापान और ताइवान में सर्किट ब्रेकर का लगना बताता है कि सेलिंग ऑर्डर्स सिस्टम की सामर्थ्य से ऊपर चले गए। निक्केई के 18 महीने के निचले स्तर पर फिसलने के साथ बैंकिंग शेयर तीन दिनों में करीब 25% टूटे—यानी फाइनेंशियल्स में डौट्स सबसे गहरे हैं। यूरोप में भी मैन्युफैक्चरिंग और लग्जरी—दोनों पर दबाव बढ़ा, क्योंकि चीनी मांग और ट्रांसअटलांटिक ट्रेड पर सवाल खड़े हो गए।
भारत में प्री-ओपन से ही 5% से ज्यादा गिरावट के संकेत मिल गए थे। कारण साफ है: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक रिस्क-ऑफ में पहले उभरते बाजारों से पैसा निकालते हैं। रुपया ऐसे समय में सामान्यतः कमजोर पड़ता है, और आयात-निर्भर कंपनियों की लागत बढ़ जाती है। आईटी और फार्मा जैसी सेक्टर्स—जिनकी बड़ी कमाई अमेरिका-यूरोप से आती है—ग्लोबल डिमांड की कमजोरी और करेंसी स्विंग्स के दोहरे असर में फंस सकते हैं। दूसरी ओर, कच्चे तेल की गिरावट थोड़ी राहत देती है, पर वह तभी टिकाऊ मानी जाएगी जब यह महज़ डिमांड-डिस्ट्रक्शन की कहानी न बन जाए।
क्रेडिट मार्केट का तापमान देखना भी जरूरी है। आमतौर पर इक्विटी क्रैश के साथ हाई-यील्ड स्प्रेड्स चौड़े होते हैं और कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट की लिक्विडिटी पतली होती है। बैंकिंग सेक्टर पर मार्क-टू-मार्केट दबाव और फंडिंग कॉस्ट की चिंता बढ़ती है—यही वजह है कि दुनिया भर में बैंक शेयर सबसे ज्यादा पीटे गए।
यह दौर 1987 से कैसे अलग और कैसे समान? समानता—तीन-चार दिनों में पैनिक सेलिंग, लिक्विडिटी की तलाश और 'बेचो, बाद में सोचो' वाली ट्रेडिंग साइकोलॉजी। फर्क—1987 में ट्रिगर स्ट्रक्चरल (पोर्टफोलियो इंश्योरेंस, फ्यूचर्स-आर्बिट्राज) था; 2025 में ट्रिगर पॉलिसी-ड्रिवन है। यानी समाधान भी नीति-स्तर पर ही संभव है: टैरिफ रोलबैक/राहत, लक्षित छूट, और बड़े पार्टनर्स के साथ त्वरित वार्ता।
आगे क्या? मार्केट तीन रास्तों में से किसी एक पर जा सकता है:
- शॉर्ट-टर्म बॉटम, टेक्निकल बाउंस: अगर नीतिगत मैसेज नरम पड़ता है—मसलन टैरिफ पर स्पष्ट समयरेखा या अपवादों की सूची—तो शॉर्ट-कवरिंग से तेज रिकवरी दिख सकती है। VIX का 45 से नीचे टिकना इस केस को सपोर्ट करेगा।
- धीमी, नसों को थकाने वाली गिरावट: अगर अनिश्चितता बनी रही और कमाई के गाइडेंस कटते रहे, तो बाजार लोअर-हाई, लोअर-लो पैटर्न में महीनों तक अटका रह सकता है।
- क्लासिक कैपिट्यूलेशन: चीन सहित बड़े ट्रेड पार्टनर्स का कड़ा रुख और फाइनेंशियल कंडीशंस का जल्दी टाइट होना—तो 1987 स्टाइल का एक-बार का गहरा लेग डाउन संभव, जैसा जिम क्रेमर ने इशारा किया।
किन संकेतों पर नजर रहे? सबसे पहले, टैरिफ-टॉक की टोन और किसी भी बैक-चैनल वार्ता के संकेत। दूसरा, कमाई का सीजन—कितनी कंपनियां गाइडेंस काट रही हैं, खासकर टेक, ऑटो, इंडस्ट्रियल्स और फाइनेंशियल्स। तीसरा, वॉलेटिलिटी और क्रेडिट—क्या VIX 30 के नीचे टिकता है? क्या हाई-यील्ड स्प्रेड्स स्थिर होते हैं? चौथा, पॉलिसी रेस्पॉन्स—क्या सेंट्रल बैंक लिक्विडिटी बैकस्टॉप्स और डॉलर फंडिंग लाइंस सक्रिय रखते हैं?
भारत के लिए चेकलिस्ट अलग है। रुपया और बॉन्ड यील्ड्स की दिशा एफपीआई फ्लो का साफ इशारा देती है। डॉलर स्ट्रेंथ बढ़ी तो आयात-निर्भर सेक्टर्स पर दबाव बढ़ेगा; कच्चे तेल के नीचे रहने से चालू खाते को राहत मिल सकती है। आईटी-फार्मा जैसी डिफेंसिव जेबों में शॉर्ट-टर्म सपोर्ट दिख सकता है, पर ऑर्डर बुक्स और प्राइसिंग पॉवर पर बयान अहम होंगे।
तेजी-गिरावट के बीच एक बात साफ है—यह क्रैश 'स्पीड' की भाषा में रिकॉर्ड तोड़ चुका है। दो दिनों में 6.6 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान बाज़ार की नियति नहीं, अनिश्चित नीतिगत संकेतों का परिणाम दिखता है। 1987 में निवेशकों ने कंप्यूटर अल्गोरिद्म्स पर उंगली उठाई थी; 2025 में उंगली सीधे टैरिफ और ट्रेड रिटैलियेशन पर उठ रही है।
टेक्निकल्स भी अभी दोस्त नहीं हैं। प्रमुख इंडेक्सेज 200-डे मूविंग एवरेज के नीचे जा चुके हैं, और ब्रेड्थ कमजोर है—ज्यादातर स्टॉक्स नए लो बना रहे हैं। जब तक क्रेडिट, वॉलेटिलिटी और पॉलिसी—तीनों पर राहत साथ नहीं आती, टिकाऊ बॉटम की अटकलें जोखिम भरी रहेंगी।
फिलहाल, बाजार संदेश साफ है: वैश्विक व्यापार के नियम जितने सख्त होंगे और जितनी तेजी से लागू होंगे, वैल्यूएशन उतनी ही जल्दी रीसेट होंगे। निवेशकों के लिए यह समय हेडलाइन-रिस्क, पॉलिसी-रिस्क और अर्निंग-रिस्क—तीनों को एक साथ मैनेज करने का है। और नीति-निर्माताओं के लिए—‘टैरिफ के हथियार’ का इस्तेमाल जितना व्यापक होगा, उसके बैकफायर का जोखिम भी उतना बड़ा।
RAJIV PATHAK
अगस्त 24, 2025 AT 06:10अरे भाई, ये सब टैरिफ वाली बातें तो बस एक और अमेरिकी ट्रेड वॉर का नया नाम है। हम तो हमेशा से इनके बाहरी नियंत्रण के शिकार रहे हैं। जिम क्रेमर जैसे लोग तो बस अपने फंड्स को सेव करने के लिए डर फैला रहे हैं। बाजार को नहीं, अपने बोनस को बचाना है उनको।
Nalini Singh
अगस्त 24, 2025 AT 13:18यह घटना वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के नियमों के गहरे विकृत होने का प्रतीक है। व्यापार का आधार आपसी विश्वास और नियमित नियमों पर होना चाहिए, न कि एकल निर्णयों पर। भारत के लिए इस संकट का एक अवसर भी हो सकता है-अपनी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने का।
Sonia Renthlei
अगस्त 25, 2025 AT 17:35मुझे लगता है कि हम सब इस बात को भूल रहे हैं कि ये सब नीतिगत गलतियाँ हैं, न कि बाजार की त्रुटि। जब एक देश अपने अपने लाभ के लिए दुनिया के साथ व्यापार करने के नियम बदल देता है, तो ये सिर्फ एक टैरिफ नहीं, बल्कि एक विश्वासघात है। मैं उन छोटे उद्यमियों के बारे में सोच रही हूँ जिनके पास अब न तो निवेश है और न ही समझ है कि अगला कदम क्या होगा। ये लोग तो बस देख रहे हैं कि उनका बिजनेस धुंध में क्यों खो रहा है।
Aryan Sharma
अगस्त 25, 2025 AT 18:50ये सब बड़े लोगों का षड्यंत्र है। ट्रंप नहीं, चीन नहीं-बल्कि फ्रीमेसन्स और बिल गेट्स ने ये सब ठान लिया है। वो चाहते हैं कि सब गरीब हो जाएं ताकि हम सब उनके डिजिटल करेंसी में जमा कर दें। ये टैरिफ बस ढोंग है।
Devendra Singh
अगस्त 27, 2025 AT 12:45अरे भाई, ये जिम क्रेमर तो अपने फंड मैनेजर के बर्तन में नहीं बैठता। 1987 की तुलना करना बेकार है-वो तो बस एक टेक्निकल ग्लिच था। आज का मुद्दा पॉलिसी रिस्क है, और तुम जैसे लोग अभी तक टेक्निकल एनालिसिस में फंसे हो। बेसिक्स नहीं आते तुम्हें।
UMESH DEVADIGA
अगस्त 29, 2025 AT 08:18मैं तो इस बारे में बहुत डर गया हूँ। मेरा पैसा तो इंडेक्स फंड में है, अब तो मैं रात में जाग जाता हूँ। क्या मैं अपना घर बेच दूँ? क्या मैं अपनी बेटी की शादी टाल दूँ? ये सब इतना तेज़ हो गया कि मैं समझ ही नहीं पा रहा।
Roshini Kumar
अगस्त 29, 2025 AT 14:29लोग भूल गए कि 1987 में भी सब कुछ टैरिफ के कारण नहीं गिरा था… ये लोग तो अब भी बाजार को एक नियमित चीज़ समझते हैं। बाजार तो एक बड़ा भूत है जो हमें दिखाता है कि हम कितने नाकाबिल हैं। वॉल स्ट्रीट ने तो अपने आप को ही फंसा लिया है।
Siddhesh Salgaonkar
अगस्त 31, 2025 AT 06:40ये जो बाजार गिरा… बस एक अलर्ट है कि अमेरिका अब दुनिया का बाप नहीं रहा 😔💥 टैरिफ लगाना तो बहुत आसान है… पर फिर वापस लेना? वो तो एक डरावनी बात है। अब तो हमें अपने घर के बाहर भी बैठकर खाना खाना चाहिए। 🇮🇳
Arjun Singh
सितंबर 1, 2025 AT 14:48लिक्विडिटी क्रंच आ गया है और क्रेडिट स्प्रेड्स एक्सपैंड हो रहे हैं। बैंकिंग सेक्टर अब बर्निंग लाइट के नीचे है। टेक स्टॉक्स का P/E रेटिंग तो अब शून्य के पास है। ये नहीं कह सकते कि ये बस एक टेक्निकल कॉर्रेक्शन है। ये एक सिस्टमिक रिस्क एवेलांच है।
yash killer
सितंबर 3, 2025 AT 04:41अमेरिका ने हमें धोखा दिया और चीन ने घुटने टेक दिए। भारत अब अपना रास्ता बनाएगा। टैरिफ? फिर क्या? हम अपने घर में बनाएंगे, अपने देश में बेचेंगे। अब नहीं चलेगा बाहरी दुनिया का बाप बनना। भारत जिंदाबाद!
Ankit khare
सितंबर 3, 2025 AT 14:34इस बार तो असली गलती वो हुई जो लोगों ने सोचा कि ट्रेड वॉर बस एक बात है जिसे आप चार दिन में भूल सकते हैं। नहीं भाई, ये तो एक नए युग की शुरुआत है जहाँ देश अपने लोगों को बचाने के लिए दुनिया के साथ लड़ेंगे। अब तो आप जो भी करें वो अपने देश के लिए होगा नहीं तो बेकार है।
Chirag Yadav
सितंबर 3, 2025 AT 16:51मुझे लगता है कि हम इसे बहुत अधिक भावनात्मक तरीके से ले रहे हैं। बाजार गिरा है, ठीक है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भारत खत्म हो गया। हमारे पास अभी भी बहुत कुछ है। हमें अपने आंतरिक बाजार को मजबूत करना होगा, न कि बाहरी दुनिया को दोष देना। ये समय हमें एक साथ आने का है।
Shakti Fast
सितंबर 4, 2025 AT 02:13हम सब डर रहे हैं, और ये ठीक है। लेकिन डर के साथ आशा भी है। अगर हम अपने छोटे उद्यमियों को सहारा दें, अगर हम अपने आईटी और फार्मा सेक्टर को बढ़ावा दें, तो ये बाजार की गिरावट हमारे लिए एक नया अवसर बन सकती है। आप अपने आप को बहुत कमजोर मत समझिए। हम इसे पार कर लेंगे।
saurabh vishwakarma
सितंबर 5, 2025 AT 07:49यह जो गिरावट हुई है… यह तो बस एक अलर्ट है। जब एक देश अपने लोगों के लिए नीति बनाता है, तो दुनिया उसे दोषी ठहराती है। ये नहीं बताता कि हम गलत हैं… बल्कि ये बताता है कि दुनिया हमें अपने नियमों के अनुसार चलने नहीं देती। ये एक नए युग की शुरुआत है।
MANJUNATH JOGI
सितंबर 5, 2025 AT 22:54मार्केट एक दर्पण है जो हमारी नीतिगत भूलों को दिखाता है। ग्लोबल सप्लाई चेन अब एक जटिल नेटवर्क है-जिसमें एक बिंदु की टूट ने समूचा सिस्टम हिला दिया। भारत के लिए अब ये समय है कि हम अपने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और लोकल वैल्यू चेन को बढ़ाएं। ये टैरिफ एक चुनौती है, लेकिन ये अंत नहीं।
Sharad Karande
सितंबर 7, 2025 AT 16:28वॉलेटिलिटी और क्रेडिट स्प्रेड्स के बीच का संबंध अब एक अत्यंत महत्वपूर्ण लीडिंग इंडिकेटर बन गया है। यदि हाई-यील्ड स्प्रेड्स 500 बेसिस पॉइंट से ऊपर जाते हैं, तो यह आर्थिक अवसाद का एक स्पष्ट संकेत है। अभी VIX 45 है, जो अभी तक के अधिकतम स्तरों के समीप है-इसका मतलब है कि बाजार में एक गहरी अनिश्चितता का विश्वास है।
Sagar Jadav
सितंबर 8, 2025 AT 06:04टैरिफ बुरा है।
Dr. Dhanada Kulkarni
सितंबर 8, 2025 AT 06:17यह समय हमें एक साथ आने का है। निवेशकों, सरकारों और सामान्य नागरिकों के बीच एक समझ होनी चाहिए। यह केवल बाजार का सवाल नहीं है-यह हमारे सामाजिक और आर्थिक भविष्य का सवाल है। हमें शांति से, विवेक से और एकता से आगे बढ़ना होगा।
Rishabh Sood
सितंबर 10, 2025 AT 06:10यह जो गिरावट हुई है… यह बाजार की गलती नहीं है। यह एक नए युग का जन्म है-जहाँ शक्ति का केंद्र अब टेक्नोलॉजी और नीति के बीच घूम रहा है। जब तक हम अपने आप को एक ग्राहक के रूप में नहीं बदलेंगे, तब तक हम दुनिया के नियमों के शिकार बने रहेंगे।
Saurabh Singh
सितंबर 10, 2025 AT 09:59तुम सब ये सब बातें कर रहे हो… लेकिन क्या तुमने कभी सोचा कि ये सब तुम्हारी निर्लज्जता का परिणाम है? तुम अपने आप को बाजार का हिस्सा बनाने के बजाय बाहर खड़े हो गए। अब तुम्हारी गलती का बदला ले रहा है।