सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 'भारत बंद'
21 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट के SC/ST आरक्षण पर हालिया फैसले के खिलाफ 'भारत बंद' का आयोजन किया गया। यह बंद विशेष रूप से बिहार और झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रभावी रहा। इस बंद का समर्थन राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और 'इंडिया ब्लॉक' के अन्य सहयोगियों ने किया।
बिहार में बंद का व्यापक प्रभाव
बिहार के विभिन्न जिलों में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने बल प्रयोग किया। पुलिस को पटना, दरभंगा, और बेगूसराय सहित कई जिलों में रेल और सड़क जाम करने वाले प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज और वॉटर कैनन का उपयोग करना पड़ा। इस वजह से पटना, हाजीपुर, दरभंगा, जहानाबाद, और बेगूसराय जैसे क्षेत्रों में ट्रेन सेवाओं और यातायात में बाधाएं आईं।
स्वतंत्र सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने पटना में प्रदर्शन का नेतृत्व किया और एनडीए सरकार के SC/ST कोटा के प्रति रुख की आलोचना की। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार आरक्षण को कमजोर करने का प्रयास कर रही है।
झारखंड में तनावपूर्ण स्थिति
झारखंड की राजधानी रांची में सड़कों को पूरी तरह से ब्लॉक कर दिया गया। प्रदर्शनकारियों ने टायर जलाकर अपना विरोध प्रकट किया। पुलिस उच्च सतर्कता पर थी ताकि किसी भी अनुचित घटना को रोका जा सके।
राजस्थान और उत्तर प्रदेश में स्थितियां
राजस्थान के बीकानेर जिले में लॉकडाउन जैसा माहौल था। यहां SC/ST समुदाय के सदस्य बंद की सफलता सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्र पर नजर रख रहे थे। उत्तर प्रदेश के नोएडा में पुलिस संयुक्त आयुक्त शिव हरि मीना ने कहा कि पुलिस कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए फूट मार्च कर रही थी ताकि आम लोगों को किसी प्रकार की समस्या न हो।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यों वाली बेंच, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे, ने राज्यों को आरक्षण नीतियों के भीतर SCs और STs को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति दी। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि राज्यों को इन श्रेणियों के भीतर 'क्रीमी लेयर' की पहचान करनी चाहिए ताकि जो पहले से ही पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्वित हैं, उन्हें अपवाद किया जा सके। इस निर्णय ने EV चिननयाह मामले के पहले के फैसले को रद्द कर दिया जिसमें कहा गया था कि उप-वर्गीकरण अनुमत नहीं था। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने इस निर्णय के विरोध में असहमति व्यक्त की।
केंद्रीय मंत्री जयंत सिंह चौधरी ने सुझाव दिया कि यह मुद्दा विधि मंत्री और मंत्रिमंडल द्वारा संबोधित किया गया था, और इसलिए आगे की कार्रवाई की आवश्यकता नहीं थी।
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