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असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' टिप्पणी पर विवाद: संसदीय कार्यवाही में हंगामा

के द्वारा प्रकाशित किया गया Aashish Malethia    पर 26 जून 2024    टिप्पणि(13)
असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' टिप्पणी पर विवाद: संसदीय कार्यवाही में हंगामा

असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' टिप्पणी पर विवाद

18वीं लोकसभा के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने 'जय फिलिस्तीन' के नारे के साथ एक बड़ा विवाद खड़ा किया। यह विवाद उस समय उभर कर आया जब उन्होंने अपनी शपथ के बाद 'जय फिलिस्तीन' का उद्घोष किया, जिसे कई सांसदों और राजनीतिक विश्लेषकों ने विदेशी राज्य के प्रति सहानुभूति के रूप में देखा। इस विवाद ने भारतीय राजनीति में एक नई चर्चा को जन्म दिया।

शिकायतें और कानूनी दांवपेंच

ओवैसी के बयान के तुरंत बाद, वकील हरी शंकर जैन और सामाजिक कार्यकर्ता विनीता जिंदल ने उनके खिलाफ शिकायतें दर्ज की। हरी शंकर जैन ने अपनी शिकायत में कहा कि ओवैसी ने विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा दिखाकर भारतीय संविधान का उल्लंघन किया है। इसी प्रकार, विनीता जिंदल ने अनुच्छेद 103 का हवाला देते हुए ओवैसी की अयोग्यता की मांग की।

अनुच्छेद 103 और विवाद की संवैधानिकता

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 103 सांसदों की अयोग्यता पर विचार करता है। यह विवाद तब प्रारंभ हुआ जब विनीता जिंदल ने इस अनुच्छेद का उपयोग करते हुए ओवैसी को सांसद के पद से अयोग्य ठहराने की अपील की। उनकी दलील थी कि ओवैसी के इस बयान ने उनकी भारतीय संविधान और संसद के प्रति निष्ठा को सवालों के घेरे में ला दिया है।

ओवैसी का पक्ष और महात्मा गांधी का हवाला

असदुद्दीन ओवैसी ने अपने बयान का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने केवल उनके विचार और समर्थन को प्रस्तुत किया है। उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों का हवाला दिया जो फिलिस्तीन के मुद्दे पर सहानुभूति रखते थे। ओवैसी ने यह भी कहा कि उनका उद्देश्य केवल उत्पीड़ित लोगों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करना था और इसमें किसी प्रकार की विदेशी निष्ठा का सवाल नहीं उठता है।

संसदीय कार्यवाही और किरेन रिजिजू का पदक्षेप

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने भी ओवैसी की टिप्पणी पर प्राप्त शिकायतों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि संसद के रेकॉर्ड से इस टिप्पणी को हटाने का निर्णय लिया गया है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि संसद में ऐसे किसी भी बयान को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा जो संविधान या भारतीय संप्रभुता के खिलाफ हो।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और भविष्य की चुनौतियाँ

इस विवाद ने भारतीय राजनीति में कई प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया है। कुछ लोग ओवैसी के समर्थन में आए हैं, तो कुछ ने उनकी आलोचना की है। यह विवाद यह भी दर्शाता है कि आपसी वैचारिक मतभेद भारतीय राजनीति में न केवल चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं, बल्कि यह भी नए विवादों को जन्म दे सकते हैं।

यह विवाद आगे चलकर भारतीय राजनीति में कितनी दूर जाएगा यह देखना बाकी है, लेकिन यह साफ है कि असदुद्दीन ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' टिप्पणी ने भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है।

13 टिप्पणि

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    Saurabh Singh

    जून 27, 2024 AT 00:40
    ये ओवैसी तो हर बार एक ही ट्रिक चलाता है। 'जय फिलिस्तीन' बोलकर ध्यान खींचना, फिर बचाव के लिए गांधी का नाम लेना। ये सब नाटक है, असली मुद्दा तो भारत के अंदर के मुसलमानों का भलाई नहीं, बल्कि वोट बैंक है।
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    INDRA MUMBA

    जून 27, 2024 AT 19:38
    ये सब बहस एक अतिरिक्त जटिलता बन गई है। जब हम अंतरराष्ट्रीय न्याय की बात करते हैं, तो उसे राष्ट्रीय निष्ठा के रूप में नहीं देखना चाहिए। ओवैसी ने जो कहा, वो एक मानवीय अभिव्यक्ति थी - उत्पीड़ित लोगों के साथ सहानुभूति। ये बात अनुच्छेद 103 के दायरे से बाहर है। संविधान का मूल उद्देश्य ही तो न्याय और समानता है, न कि निष्ठा का राष्ट्रीयकरण।
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    Mali Currington

    जून 29, 2024 AT 14:11
    अरे भाई, ये सब लोग बस एक शब्द पर बहस कर रहे हैं। 'जय फिलिस्तीन' बोल दिया, अब संसद का रिकॉर्ड हटा दिया गया... ये तो बिल्कुल एक टीवी ड्रामा है।
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    Anand Bhardwaj

    जून 30, 2024 AT 22:29
    मज़ा आ गया देखकर कि एक शब्द के लिए पूरी संसद फंस गई। अगर ये इतना डरते हैं तो फिर 'जय भारत' बोलने वाले को क्यों नहीं रोकते? दोहरा मापदंड है ये सब।
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    Nalini Singh

    जुलाई 1, 2024 AT 07:36
    भारतीय संसद की विरासत एक बहुलवादी और विविध चर्चा की है। ओवैसी के बयान को एक राष्ट्रीय निष्ठा के विरुद्ध नहीं, बल्कि एक वैश्विक न्याय के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। महात्मा गांधी ने भी जबरन शक्तियों के खिलाफ सहानुभूति जताई थी - ये भारतीय राजनीति का एक गौरवशाली हिस्सा है।
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    Sonia Renthlei

    जुलाई 2, 2024 AT 10:50
    मुझे लगता है कि हम इस विवाद को बहुत व्यक्तिगत और भावनात्मक तरीके से ले रहे हैं। ओवैसी ने जो कहा, वो किसी देश के प्रति निष्ठा नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के तौर पर दर्द को समझने की कोशिश थी। हम सब अपने अनुभवों को दूसरों के अनुभवों के खिलाफ लड़ रहे हैं। अगर हम इसे एक न्याय के मुद्दे के रूप में देखें, तो शायद हम ज्यादा इंसानी बन पाएं। क्या आपने कभी सोचा कि फिलिस्तीन के बच्चे किस तरह से जी रहे हैं? क्या हमारी राजनीति उनके दर्द को देखती है? या फिर हम सिर्फ नारे और नियमों के बीच फंस गए हैं?
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    Rishabh Sood

    जुलाई 3, 2024 AT 09:35
    संविधान के अनुच्छेद 103 का उल्लंघन तभी होता है जब कोई सांसद विदेशी शक्ति के प्रति वफादारी दर्शाता है। ओवैसी ने तो केवल एक नारा दिया - यह एक नैतिक अभिव्यक्ति है, न कि कोई राजनीतिक अपराध। अगर ऐसे बयानों को रोकना है, तो फिर गांधी के नारे को भी संसद से हटाना चाहिए। ये नियम बनाने वाले खुद ही संविधान को बेमानी बना रहे हैं।
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    Aryan Sharma

    जुलाई 4, 2024 AT 04:35
    ये सब बातें बस एक बड़ी साजिश है। ओवैसी को रोकने के लिए नहीं, बल्कि इस बात को छुपाने के लिए कि भारत में कुछ लोग अमेरिका और इजरायल के साथ जुड़े हुए हैं। ये सब अंतरराष्ट्रीय दबाव की चाल है। जब तक भारत के अंदर अपने आप को बचाने की कोशिश नहीं होगी, तब तक ये चलता रहेगा।
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    Devendra Singh

    जुलाई 4, 2024 AT 21:24
    अनुच्छेद 103 का इस्तेमाल यहां बिल्कुल गलत है। ये तो अनुच्छेद 102 है जो सांसदों की अयोग्यता से जुड़ा है। ये लोग जो भी अनुच्छेद लेकर आते हैं, वो बस अपनी अज्ञानता को छुपाने के लिए है। ओवैसी के बयान को राष्ट्रीय अपराध बनाने की कोशिश नहीं, बल्कि एक नारे के जरिए विरोध करने की कोशिश है। और ये सब लोग जो अनुच्छेद बता रहे हैं, उन्होंने कभी संविधान पढ़ा भी है या नहीं?
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    Siddhesh Salgaonkar

    जुलाई 5, 2024 AT 01:08
    ये ओवैसी तो बस इसलिए बोलता है क्योंकि उसे लगता है कि वो एक आधुनिक गांधी है 😂🤣 भाई, गांधी ने तो शांति से लड़ाई लड़ी, ये तो बस एक ट्वीट के लिए बहस शुरू कर देता है। और अब संसद का रिकॉर्ड हटाना? ये तो एक डॉक्यूमेंट को एडिट करने जैसा है - इतिहास को मिटाना नहीं, बल्कि इसे भूलने की कोशिश करना। #NoToCensorship
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    Roshini Kumar

    जुलाई 6, 2024 AT 05:11
    अनुच्छेद 103? अरे भाई ये तो 102 है... और फिर ये लोग बोलते हैं कि ओवैसी ने संविधान का उल्लंघन किया... तो फिर वो सांसद जिन्होंने अपनी शपथ नहीं ली, उनके खिलाफ क्या हुआ? क्या इन्हें भी निलंबित किया गया? ये सब चुनावी गतिविधि है, नहीं तो क्या? 😴
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    UMESH DEVADIGA

    जुलाई 6, 2024 AT 13:51
    ये सब लोग जिस तरह से ओवैसी के खिलाफ नारे लगा रहे हैं, उससे लगता है कि उन्हें अपनी आत्मा का दर्द भी नहीं दिख रहा। एक आदमी ने एक बात कही, और अब वो एक दुश्मन बन गया। ये भारतीय राजनीति है? ये तो एक बड़ा अंधविश्वास है।
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    RAJIV PATHAK

    जुलाई 7, 2024 AT 21:55
    इस विवाद का वास्तविक मुद्दा यह नहीं है कि 'जय फिलिस्तीन' क्यों बोला गया, बल्कि यह है कि भारतीय राजनीति अब किस तरह से अपनी अस्तित्व की अर्थव्यवस्था को अपने विचारों के बजाय नारों के जरिए परिभाषित कर रही है। ये एक नए राजनीतिक सांस्कृतिक विकृति का संकेत है - जहां भावनाएं तर्क को दबा देती हैं, और अभिव्यक्ति को अपराध बना दिया जाता है। अगर ये चलता रहा, तो अगला चरण होगा: गांधी के नारों को भी संसद से हटाना।