आईएमए का देशव्यापी विरोध प्रदर्शन
भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) ने 17 अगस्त को सभी गैर-आपातकालीन चिकित्सकीय सेवाओं को 24 घंटे के लिए वापस लेने का निर्णय लिया है। यह कदम प्रस्तावित राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक के विरोध में उठाया गया है। आईएमए के सचिव जनरल डॉ. एस.ए. थसनीम ने बताया कि इस दौरान आपातकालीन सेवाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अन्य सभी चिकित्सा सेवाएं 24 घंटे के लिए निलंबित रहेंगी।
विधेयक के प्रति चिंता
आईएमए के मुताबिक, एनएमसी विधेयक में कुछ ऐसे प्रावधान हैं जो चिकित्सा पेशेवरों की स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकते हैं। संगठन ने विशेष रूप से गैर-एमबीबीएस प्रैक्टिशनर्स को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल करने और नए लाइसेंसिंग परीक्षा को लेकर अपनी आपत्ति जताई है। आईएमए का कहना है कि यह बिल चिकित्सा शिक्षा और पेशेवरों की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
प्रमुख विरोध के मुद्दे
आईएमए की मुख्य चिंताओं में सबसे प्रमुख यह है कि यदि एनएमसी विधेयक पारित हो जाता है, तो इसमें वैसे चिकित्सा पेशेवर शामिल होंगे जिनके पास एमबीबीएस की डिग्री नहीं है। यह देश के लाखों चिकित्सीय पेशेवरों के लिए बड़ा झटका हो सकता है। इसके अलावा, नया लाइसेंसिंग परीक्षा भी चिकित्सा छात्रों के लिए अतिरिक्त दबाव पैदा करेगी, जो पहले से ही अपने पढ़ाई के दौरान कई परीक्षाओं से गुजरते हैं।
विधेयक में यह भी प्रावधान है कि मेडिकल कॉलेजों की फीस और सीटें सरकार द्वारा संरिजित की जाएंगी, जोकि निजी कॉलेजों के छात्रों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। इसके अलावा, एनएमसी को चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन आईएमए का मानना है कि इस जिम्मेदारी को वह सही से निभा पाएगी या नहीं, इस पर भी सवाल है।
प्रदर्शन और विरोध की योजना
आईएमए ने देशभर में विरोध प्रदर्शन और धरने का भी आयोजन किया है। संगठन ने बताया कि 17 अगस्त को विभिन्न शहरों और कस्बों में प्रदर्शन होंगे। प्रमुख शहरों में रैलियां और धरने होंगे जिनके माध्यम से आईएमए अपनी चिंताओं को आवाज देगा। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर भी विरोध प्रदर्शनों का समन्वय किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक लोग इस आंदोलन से जुड़ सकें।
चिकित्सकों की भूमिका
डॉ. थसनीम ने यह स्पष्ट किया कि यह विरोध चिकित्सकीय पेशेवरों की स्वायत्तता और उनकी जिम्मेदारियों को सुरक्षित करने के लिए है। आईएमए के की सदस्य और अन्य चिकित्सकीय पेशेवर इस बात पर एकमत हैं कि एनएमसी विधेयक में सुधार की जरूरत है। उनका मानना है कि वर्तमान स्वरूप में इस विधेयक को लागू करने से चिकित्सकीय पेशे में विसंगतियां उत्पन्न हो जाएंगी, जो क्लीनिकल सेवाओं पर भी असर डालेगा।
अगले कदम
आईएमए के इस बड़े कदम का परिणाम क्या होगा, यह आने वाले समय में ही पता चलेगा। संगठन का कहना है कि यदि उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो वे अपने विरोध प्रदर्शन को और भी अधिक विस्तार देंगे। यह कदम न केवल चिकित्सा पेशेवरों, बल्कि समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करेगा, क्यूंकि चिकित्सकीय सेवाएं हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
सभी चिकित्सा पेशेवरों के साथ-साथ चिकित्सा छात्रों, नर्सों और अन्य संबंधित स्टाफ की भी इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। आईएमए ने अपने सदस्यों से अपील की है कि वे एकजुट होकर इस संघर्ष में शामिल हों और चिकित्सकीय पेशे की स्वायत्तता को बनाए रखें।
सरकार की प्रतिक्रिया
इसके विपरीत, सरकार ने इस विधेयक को चिकित्सा शिक्षा और सेवाओं में सुधार लाने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया है। सरकार का कहना है कि इस विधेयक से चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और जनता को बेहतरीन सेवाएं मिल सकेंगी। स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी आईएमए के साथ बातचीत की इच्छा जाहिर की है ताकि गतिरोध का समाधान हो सके।
आईएमए की घोषणा के बाद यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले दिनों में सरकार और आईएमए के बीच किस प्रकार का संवाद होगा। यह समय हमारे देश के चिकित्सा पेशे के लिए महत्वपूर्ण है, और सभी की नजरें इस पर टिकी हैं।
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